विशेष उपलब्धि
”खुश रहने के सौ बहाने हैं,
किसी एक का दामन पकड़कर देखो तो सही,
कितने रंगीन फ़साने हैं!”
फेसबुक पर यह पढ़ते ही विन्नी को शकुंतला आंटी की स्मृति हो आई.
आंटी ने खुश रहने के सौ बहाने ढूंढ लिए थे. पति के ऑफिस में अवैतनिक रूप से कुछ महिलाओं को लंच टाइम में सिलाई सिखाकर वे भी हैड कहलाने लगी थीं. पति ऑफिस के हैड, खुद महिलाओं की हैड के साथ ही कॉलोनी के मंदिर की भी हैड, बेटे कॉलोनी की एसोसिएशन के हैड, बहुएं किट्टी पार्टी की हैड यानी पूरा परिवार हैड.
पूरा परिवार हैड हो तो हैड में अहंकार आना त्तो स्वाभाविक ही है. फिर विकास के नाम पर लूट-खसोट भी शुरु हो जाती है. आंटी इसे अपनी विशेष उपलब्धि मानती थीं, कि उन्हें हर काम के लिए चंदा उगाहने में महारत हासिल है. एक दिन खुद ही आंटी ने भरी सभा में कहा था- ”लोग कहते हैं, मैं जब भी किसी काम के लिए चंदा लेती हूं, मेरी एक मंजिल खड़ी हो जाती है.” सचमुच उनके घर की एक मंजिल का काम उन दिनों जोरों पर था. जिनका इस तरफ ध्यान नहीं था, उनका ध्यान भी आकर्षित हुआ.
आकर्षण बद्दुआओं का भी हुआ. वे बीमार हुईं, पति भी बीमार हुए. दोनों के लिए अलग-अलग कमरे, अलग-अलग परिचारक. रात के परिचारक अलग, दिन के अलग. आधुनिक बहू-बेटों को कहां इतना समय!
पति का देहांत हुआ, विन्नी ने भी सुना. विदेश में होने के कारण वह क्रिया पर नहीं जा पाई, बाद में अवसर मिलने पर गई. घर के सुरक्षा गॉर्ड ने काम पूछा.
”आंटी से अफ़सोस जताना है.” विन्नी ने कहा.
”उनसे तो आप मिल ही नहीं सकतीं, उन्हें खुद नहीं पता कि उनके पति का देहांत हो चुका है, बहुएं किट्टी पार्टी में गई हैं.”
विन्नी को लगा खुश रहने के सौ बहाने खामोश हो गए हैं, अहंकार मौन हो गया है, विशेष उपलब्धि गुमनाम हो गई है,
अगर व्यक्ति खुश रहना चाहे तो सचमुच हजार रास्ते हैं. ध्यान रहे, खुश रहने के हजार रास्ते अपनाते-अपनाते कहीं ऐसा ना हो जाए कि असली खुशी ही खत्म हो जाए. सच्ची खुशी को तलाशते तो खुदा भी मिल जाए ,गलत राह जो पकड़ी तो यहीं जहन्नुम नसीब होगा, विशेष उपलब्धि की चाहत आवश्यक है, क्योंकि यही हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है, पर अहंकार से दूरी जरूरी है. अहंकार चूर-चूर हो जाता है और चूर-चूर कर देता है.