तुम क्यों याद आते हो?
वक्त बेवक्त आज भी
न जाने,
तुम क्यों याद आते हो?
झूठे ख्वाब की तरह
हर रोज,
न जाने ,
तुम क्यों याद आते हो ?
हम जानते हैं,
आप हमें कभी,
याद नहीं करते
फिर भी
दिल की हर धड़कन में,
न जाने,
तुम क्यों याद आते हो?
सोचता हूं,
तुमको भूल जाऊंगा
पर न जाने,
फिर भी
बहती इन फिजाओं में,
बहती इन हवाओं में
तुम क्यों याद आते हो?
मैं आक्रोश करता हूं ,
इन बरस्ती बरसातों में,
इन खामोश रातों में
न जाने फिर भी
तुम क्यों याद आते हो?
— राजीव डोगरा