कविता

प्रकृति प्रकोप

अतृप्त धरा अति अकुलाई
वर्षा रूठ नभ में खिसियाई
फूलों की डाली मुरझाई
पौधों ने भी शोक मनाई ।

क्यों रूठी हो धरा हमारी
विकल भये सारे नर-नारी
बादल क्रोधित नभ घनघोर
बिजली चमक रही चहुँओर ।

आ जाओ अब वर्षारानी
बुंद बुंद को तरसे प्राणी।
बोली बरखा क्रोधित वाणी
बंद करो अपनी मनमानी

प्रकृति से मत करो खिलवाड़
वरना झेलो मेरा प्रहार
ओ मानव जागो इकबार
करो प्रकृति से अतिसय प्यार।

लौट कर आऊँगी अगली बार
तब तक झेलो सूखे की मार
मत करो अब व्यर्थ प्रलाप
करो धरा को नमस्कार।

आरती राय, दरभंगा
बिहार.

*आरती राय

शैक्षणिक योग्यता--गृहणी जन्मतिथि - 11दिसंबर लेखन की विधाएँ - लघुकथा, कहानियाँ ,कवितायें प्रकाशित पुस्तकें - लघुत्तम महत्तम...लघुकथा संकलन . प्रकाशित दर्पण कथा संग्रह पुरस्कार/सम्मान - आकाशवाणी दरभंगा से कहानी का प्रसारण डाक का सम्पूर्ण पता - आरती राय कृष्णा पूरी .बरहेता रोड . लहेरियासराय जेल के पास जिला ...दरभंगा बिहार . Mo-9430350863 . ईमेल - [email protected]