इश्क़
प्यार की गहराइयों में डूबते उतरते जज्बात
आह्लाद के साथ दे जाते रंज का भी
आघात।
यकीन कैसे होता नसीब का ओ हमराज
अपने होकर भी रहे हमेशा गैरों के साथ ।
बुजदिली नही होती आँसुओ की सौगात
कोरे दिल पर लिखे थे हमने भी कायनात ।
सर्द से दिल में भरे थे हजारों सवालात
मुस्कराने में भी जलने लगे बुझते अलाव
आंखों की जलन सुना रही थी हाल-ऐ-दिल
कौन कहता है दर्द है सिर्फ इश्क़ ऐ हालात।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़