प्रेम की वीणा
प्रेम की वीणा पर जब भी थिरकते हैं कदम
सराबोर हो जाता यूँ ही बहक जाता है मन
चांदनी में नहाए हुए बोल खनक जाते हैं ,
चाँद से मिलने को यूँ ही तड़फ जाता है मन
तार सप्तक की मधुर धुन है प्रेम की सरगम
सातों स्वर का अद्भुत संगम प्यारा प्रेमबंधन
रागिनी और राग कैसे जुदा हो सकते हैं
आत्मा का परमात्मा से मिलन है सुरसंगम
प्रेम से अमर हैं हम यही है सच जिंदगी का
प्यार की अमर गाथा लिख जाता है मन ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़