“माटी को महकाते बादल”
उमड़ घुमड़कर आते बादल
जल की बूँदे लाते बादल
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पड़ी फुहारें रिमझिम-रिमझिम
पिघल रहा है पर्वत से हिम
अनुपम छटा दिखाते बादल
जल की बूँदे लाते बादल
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बच्चे फूले नहीं लुभाते
ओढ़ रहे बरसाती-छाते
भीग रहे हैं उपवन-कानन
जल की बूँदे लाते बादल
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श्याम घटा नभ में गहराती
पौध धान की है लहराती
माटी को महकाते बादल
जल की बूँदे लाते बादल
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जब पुरवा चलती मस्तानी
बरखा की करती अगवानी
खेतों को सरसाते बादल
जल की बूँदे लाते बादल
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)