सहयोग
विवाह के पश्चात विदिशा मध्य प्रदेश की विदिशा नगरी में आ गई थी. साथ में लाई थी मां की वही परंपरागत सीख- ”बेटी, अब तू कन्या नहीं रही, महिला बन गई है. बहू, पत्नि, भाभी, चाची आदि कई रिश्ते भी अब तुझे बखूबी निभाने हैं. मायके के कुल की मर्यादा भी तेरे जिम्मे है. समझी न! तुझे दोनों कुलों की शान बनना है.”
विदिशा यह सब पहले से ही जानती थी, सुशिक्षित जो थी और नौकरी में उच्च पद पर आसीन भी.
विदिशा यह सब पहले से ही जानती थी, सुशिक्षित जो थी. आखिर मां को भी तो याद दिलाने की अपनी रीत निभानी थी न! सो विदाई-वेला के बाद चलते समय समय इन्हीं बातों को आंचल की गांठ में बांधकर लाई थी.
मां की सीख को उसने दिल से निभाया भी था. इसका नतीजा उसके सामने जल्दी ही आ भी गया था. सबने उसको घर में बैठा देखकर अपनी-अपनी जिम्मेदारी उसके ऊपर लादकर अपना उल्लू सीधा करना शुरु कर दिया था.
”इल्जाम तो हर हाल में कांटों पे ही लगेगा,
ये सोचकर अक्सर फूल भी चुपचाप ज़ख्म दे जाते हैं.”
विदिशा सब कुछ समझते-बूझते भी तब तक सहजता से यह सब सहन-वहन करती रही, जब तक उसका तबादला विदिशा में नहीं हो गया.
”मैं विदिशा ही रहूंगी. विदिशा नदी की तरह अपभ्रंशित होते-होते ”वैस” नहीं बनूंगी.” उसने मन-ही-मन निश्चय किया. पतिदेव को भी उसने अपनी योजना से अवगत करा दिया था.
”मैं तुम्हारी राय से सहमत हूं. अब तक तुमने जो उचित समझा, किया है. मुझे कोई उलाहना नहीं सुनना पड़ा. ऑफिस के इतने बड़े पद की जिम्मेदारी भी कम तो नहीं होती न! निश्चिंत रहो, मैं तुम्हारे साथ हूं.”
जैसे-जैसे उसका नौकरी पर जाने का दिन पास आता गया, एक-एक कर विनम्रता से वह सबको अपनी-अपनी जिम्मेदारी सौंपती रही. उसकी सलोनी सीरत की कायल सासू मां उसके दिशा-विहीन न होने पर भी निहाल हो गई थी.
उसने एक-एक की जिम्मेदारी पर कड़ी नजर रखकर विदिशा को पूरा सहयोग दिया था.
आदरणीय दीदी, सादर प्रणाम. विदिशा की कथा सही दिशा देने वाली है … पति और सास का सहयोग उसने बुद्धिमानी से प्राप्त कर लिया … अगर विदिशाएं फल फूल कर हमारे देश की संस्कृति में समा जाएं और पति तथा सास का सहयोग मिले तो विवाह विच्छेद जैसी घटनाओं में अप्रत्याशित कमी आ जाए. सार्थक रचना के लिए आभार.
प्रिय ब्लॉगर सुदर्शन भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. विदिशा की कथा सही दिशा देने वाली है … पति और सास का सहयोग उसने बुद्धिमानी से प्राप्त कर लिया … अगर विदिशाएं फल फूल कर हमारे देश की संस्कृति में समा जाएं और पति तथा सास का सहयोग मिले तो विवाह विच्छेद जैसी घटनाओं में अप्रत्याशित कमी आ जाए. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
विदिशा नई बहू का नाम है. उसका विवाह भी विदिशा नगरी में हुआ था, जो विदिशा नदी के किनारे बसी हुई है. विदिशा नदी का नाम बिगड़ते-बिगड़ते वैस हो गया है. नई बहू विदिशा ने बहुत समझदारी से अपने को वैस होने से बचा लिया, उसमें उसे समझदार सास का सहयोग भी मिला.