पर्यावरण

मेरे घर के बारामदे में गौरैया के नन्हें-मुन्ने ,प्यारे बच्चे

मैं अपने घर के उन सभी खुले व ऊँचे स्थानों पर अपनी प्रिय गौरैयों के लगभग 550 घोसलों को बनाकर लगाया हूँ, जहाँ उनके दुश्मन जैसे बिल्ली, साँप आदि न पहुँच सकें और वे घोसले बारिश और आँधी-तूफ़ान में भी सुरक्षित रहें जैसे छज्जे के नीचे, जीने (सीढ़ियों) के ऊँचे स्थानों, बारामदे के पिलरों के शीर्ष भागों पर और उसके बीम आदि स्थानों पर कील ठोककर या लिंटर में पूर्वनिर्धारित जगहों पर लगे लोहे के हुकों में सटरिंग में प्रयोग होने वाले लोहे के मुलायम तारों से घोसलों को अच्छी तरह बाँधकर उन्हें स्थिर कर दिया हूँ, ताकि वे आँधी-बारिश में गिरें नहीं।
इस वर्ष मेरे घर के बारामदे में लगे घोसले में गौरैया के जोड़े ने चार बार अंडे दिए, जिसमें पहली बार हुए उनके दो बच्चे किसी ‘अज्ञात कारण ‘से नहीं बच पाये, परन्तु उसके बाद तीन बार क्रमशः दो बच्चे, फिर दो बच्चे और यह संग्लग्न विडिओ में तीसरी बार तीन बच्चे हुए हैं। माँ गौरैया अपने बच्चों के पालन-पोषण में अपनी पूरी शक्ति और लगभग दिन भर उनको खाना खिलाने, पानी पिलाने, उनके किए हुए बीट साफ करने और प्यार-दुलार करने में बिताती है, हमने सूक्ष्म अध्ययन किया है कि माँ गौरैया बच्चों के लालन-पालन में 90 प्रतिशत अपनी उर्जा लगा देती है, इसके विपरीत ‘पिता ‘ कभी-कभार बच्चों को दाना चुगाता है, वह प्रायः घोसले के आसपास उपस्थित रह कर अपने नन्हें-मुन्नों की मुस्तैदी से ‘रखवाली ‘करता है, यह बहुत जरूरी भी है, क्योंकि गौरैया के बच्चों के बहुत से दुश्मन भी होते हैं, जैसे बिल्ली, ब़ाज, गिलहरी, और अन्य गौरैया भी, जो अक्सर घोसले के कब्जे को लेकर ‘इन बच्चे वाले गौरैयों ‘ के दुश्मन बने हुए रहते हैं, जो अक्सर माता-पिता दोनों की अनुपस्थिति में उनके बच्चों को घोसले से खींचकर नीचे गिराकर अक्सर घोसले न मिल पाने के प्रतिशोध को ‘इस प्रकार ‘ बच्चों को नीचे गिराकर बदला ले लेतें हैं।
आपके घर में गौरैयों के बच्चों की ‘किलकारी ‘ दिन भर घर-आँगन को घोसले से अपना मुँह बाहर निकालकर अपना मुँह खोलकर ‘ चीं-चीं-चीं ‘ की आव़ाज से लगभग दिन भर (सूर्योदय से सूर्यास्त तक) एक गजब के संगीतमय, सम्मोहक और आकर्षक आवाज़ में गुँजायमान रखकर घर-आँगन को एक ‘प्राकृतिक संगीत ‘ से सदा आकर्षक बनाए रखते हैं। इस संगीत के सम्मोहित करने वाली आवाज को शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता, वह वर्णनातीत है, इसे केवल ‘अनुभव ‘किया जा सकता है। इस ‘संगीत के जादू ‘की कमी तब खलती है, जब ‘वे बच्चे ‘ बड़े होकर अपने माँ-बाप के साथ उन्मुक्त होकर उड़ जाते हैं, तब लगता है जैसे कोई अपना बच्चा ‘कहीं ‘अपने से दूर चला गया हो !
चूँकि अंधाधुंध किसानों द्वारा अपनी फसलों पर कीटनाशकों के छिड़काव से ‘कीटों के लार्वा ‘नहीं रहे (ज्ञातव्य है गौरैया पहले इन लार्वों को अपने बच्चों के पैदा होने पर उन्हें ही ‘कुचल-कुचल-कर मुलायम-कर अपने नन्हेंमुन्नों को खिलाती थी, क्योंकि ये लार्वा प्रकृति-प्रदत्त प्रोटीन के सबसे बड़े श्रोत होते हैं), अतः गौरैयों को अब अपने बच्चों के लिए खिलाने के लिए हम लोग चावल पकाकर उसमें दाल मिला देते हैं या खिचड़ी बना देते हैं, चूँकि दाल भी प्रोटीन की प्रकृतिप्रदत्त एक बहुत अच्छी श्रोत है, अतः हमारी गौरैयाँँ अपनी संतानों को बढ़ाने में पूर्णतया सफल रहीं हैं।
हम आशा करते हैं कि ये ‘सुन्दर विडिओ ‘ देखकर आपके मन में भी इस ‘नन्हीं-मुन्नी विलुप्ति के कग़ार पर खड़ी गौरैयों ‘ के प्रति कुछ करूणा, दया और ममत्व जगे और आपके भी मन में अपने घर-आँगन के एक ऊँचे कोने में ‘इन नन्हें-अदने से घर की प्यारी सदस्या के लिए ‘एक ‘नन्हाँ-प्यारा सा घोसला ‘ टाँगने की सद् इच्छा जाग्रत हो, तो आप मुझ से मेरे निम्नलिखित फोन न. पर कभी भी सम्पर्क स्थापित करके ‘इस हेतु ‘ सुझाव व परामर्श ले सकते हैं, मुझे बहुत खुशी होगी।

— निर्मल कुमार शर्मा

 

*निर्मल कुमार शर्मा

"गौरैया संरक्षण" ,"पर्यावरण संरक्षण ", "गरीब बच्चों के स्कू्ल में निःशुल्क शिक्षण" ,"वृक्षारोपण" ,"छत पर बागवानी", " समाचार पत्रों एवंम् पत्रिकाओं में ,स्वतंत्र लेखन" , "पर्यावरण पर नाट्य लेखन,निर्देशन एवम् उनका मंचन " जी-181-ए , एच.आई.जी.फ्लैट्स, डबल स्टोरी , सेक्टर-11, प्रताप विहार , गाजियाबाद , (उ0 प्र0) पिन नं 201009 मोबाईल नम्बर 9910629632 ई मेल [email protected]