कविता

शिक्षा और संस्कार

स्कूल के एडमिशन का प्रचार चल रहा था,
एडमिशन ले लो
2 पर एक मुफ्त में
मेरे यहां सबसे बढिया व्यवस्था जैसे की एसी,कूलर पंखे
बाजार में कुछ धंटो में ऐसा सुनाई देता मानो जैसे शिक्षा बेच रहे है।
एडमिशन का नाम सुनते बचपन याद आ जाता है अरे वो दिन जब हाथ कान तक पहुंच जाता तो अम्मा दादा से कहती ” मुन्ना बहुत बदमाश हो गया
तुरंत दाखिला करवाओ।
गांव के प्राइमरी में पंडित जी, मुंशी जी और बाबू साहब , मौलवी साहब के सामने खडा़ होकर दाखिला के लिये कुछ परीछा देना होता।
प्रार्थना करके पढाई करना होता फिर बहुत मेनहत करना होता
गुरू जी के शीशम के डंडे से पिटाई
कभी हल्दी प्याज बांधकर जाते थे।
घर से कोई पूछने तक नही जाता
कभी रास्ते पर गुरू जी मिलते तो दादा जी शिकायत करते” मुंशी जी बच्चे पर ध्यान दो।
शिक्षा के साथ संस्कार भी मिलता जो एक जिदंगी जीने का प्रेरणा देता।
उस समय शहर से जब गांव में जाते
वो प्राइमरी के अध्यापक बुजुर्ग हो गये
कही रास्ते पर मिल जाते मानो कोई भगवान मिल गया हो।
बहुत सम्मान देते
सच में बचपन याद आ जाता ।
आज स्कूल के नाम पर पूरा व्यापार बन गया है,
जो आये दिन बढ़ता जा रहा है।
आज के समय पैसे कमाने के लिये सबसे ज्यादा सफल व्यापार जहां टैक्स का लफडा़ नही बस पैसे कमाने का बेहतर तरीका
हो गया।
स्कूल में एक बार एडमिशन ले लो
बस सब अच्छे से दूध की तरह पैसे कैसे निकालना है
वो मनैजमेंट पर छोड़ दो।
हर पर किताब बदलकर पैसे ऐठतें, सच में कोई ना कोई कार्यक्रम होता रहता है।
पढाई के नाम पर ग्लैमर की तड़का
और पढाई करने के लिये कोचिंग करिये नही तो खैर नही।
सुबह कोचिंग जाते हुये
बहुत सारे बच्चे देखने को मिल जाते मानो विद्वता का सागर में बहने जा रहे है।
सब कुछ मिलता है मगर शिक्षा और संस्कार नही मिलता ,
जो आज देश में वृध्दा आश्रम होने का कारण है,
समाज का सतुंलन बिगड़ रहा जहां संस्कार मतलब सांस्कृतिक पतन की ओर तेजी से दौड़ रही है।
पैसा से सबकुछ खरीद सकते हो मगर शुकुन नही जो आप को वृध्दा आश्रम में अपने औलाद से दूर मिले।
— अभिषेक राज शर्मा

अभिषेक राज शर्मा

कवि अभिषेक राज शर्मा जौनपुर (उप्र०) मो. 8115130965 ईमेल [email protected] [email protected]