कविता

क्यूँ ढूंढ़े पथ न्यारे …

ना किस्मत ना कोई, भाग्य हुआ करता है

कर्मो का प्रतिफल, परिणाम हुआ करता है

हर पल निज कर्मो की, प्रतिध्वनि सुनाई देती

पर ये छोटी बात मनुज को, नहीं दिखाई देती

सुख दुख निज कर्मो का, ही कमाया फल है

जैसा आज करेगा वैसा, आने वाला कल है

क्यूँ पछताता, दोष देता, किस्मत अपनी को

अगर सुधार सको सुधारों, अपनी करनी को

ये ईश्वरीय विधान इसे ना कोई टाल सका है

झूठे गल्प यहाँ कोई, हरगिज़ ना पाल सका है

असीम कृपा है उसकी, समझ इसे तू प्यारे

करता चल कर्म से पूजा, क्यूँ ढूंढ़े पथ न्यारे

– व्यग्र पाण्डे

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,स.मा. (राज.)322201