आज जी चाहता है
लिखूँ एक पाती
प्रीत भरी पिया के नाम
कर दूं बयां
सोए अरमान सारे
कैसे विरह सताती है
हर सुबह
हर दिन
हर रात।।
वो सुबह की चाय
पर कभी होती जो बहस
फिर तुम्हारा मनाना
ऑफिस जाते हुए
देख हमारा कहना
शाम जल्दी आना
और तुम्हारा मुस्कुरा
कर गाल सहला जाना
दिन भर का इंतजार
बेकरारी की शाम
कब घर आओगे
होंगी कितनी बातें
दिन भर की ।।
लिख डालूं वो एहसास
सारे जो दिन भर टटोलते
है मुझे तेरे दूर जाने से
हुई फीकी चाय सुबह की
न रहा वो सामने से ऑफिस जाना
और शाम को घर लौट आना
बस है एक खालीपन
घर के हर कोने में
लिए तेरी यादों का बसेरा।।
आज जी चाहता है
लिखूँ एक पाती
पिया नाम तेरे
की लौट आओ न घर जल्दी
कब से ठीक से सोई नहीं हैं
ये आँखें
कब से ठीक से मुस्कराए नहीं हैं
ये लब
कब से हुई न कोई मनुहार
न कोई तकरार
बस भीगा भीगा सा मन
सोखता सोए अरमान सारे
आज जी चाहता है लिख
ही डालूं एक पाती नाम पिया के
अरमानों की स्याही से।।
— मीनाक्षी सुकुमारन