तीसरी आंख
एक आंख से धुंधला दिखने पर कैटरैक्ट के ऑपरेशन की सलाह दी गई थी. ऑपरेशन के बाद मनीषा की उस आंख पर पट्टी बांध दी गई थी. अब कुछ समय तक एक आंख से ही देखना था. एक आंख से देखना इतना सुखमय होगा, उसे पता नहीं था, दुनिया का दृश्य न दिख पाने पर मन का दृश्य मुखर हो उठा था. अनायास ही ध्यान लग गया था! सुबह अस्पताल आने से पहले देखा एक पोस्टर सामने आ गया था-
”अंधे को मंदिर आया देख लोग हंसकर बोले-
‘मंदिर में दर्शन के लिए आए तो हो,
पर क्या भगवान को देख पाओगे?’
”क्या फर्क पड़ता है,
मेरा भगवान तो मुझे देख लेगा,
दृष्टि नहीं, दृष्टिकोण सही होना चाहिए.” उसने कहा.
दृष्टिकोण! इसी दृष्टिकोण ने उसके ध्यान को भटका दिया था.
ध्यान थोड़े ही भटका था, यह तो मन का परदा सरसरा रहा था-
”मैं उसके लिए और उसके बच्चों के लिए ऑस्ट्रेलिया से थैले भर-भरकर सामान लाती हूं, वह और उसके बच्चे अपनी बड़ी-से-बड़ी खुशी को आधा किलो बर्फी से निपटा देते हैं. यही दृष्टिकोण मन को मायूसी से भर देता था. बेटा-बहू कितना समझाते थे- ”ममी, आप परेशान न हों, यह उनका स्टैंडर्ड है, हम अपने स्टैंडर्ड को क्यों न मेंटेन रखें?” उसने सोचा.
कभी-कभी उड़ता हुआ विमान भी तो अचानक वायुमंडलीय विक्षोभ से टकरा जाता है न! फिर मन के विक्षोभ का क्या कहना! विमान को आपात स्थिति में उतारना पड़ता है. उसके मन को भी इस विक्षोभ से उबरने में सत्संग में सुना एक प्रवचन सहायक बना-
”अगर कोई तुम्हें दुःख देता है, तो यह समझकर खुश रहो, कि यह पिछले जन्मों का लेना-देना निपट रहा है.”
सत्संग के इस सद्वचन ने मन के विक्षोभ को विलुप्त कर दिया था- ”जैसे ही डॉक्टर उसको मोबाइल स्क्रीन पर काम करने की इजाजत देगा, मैं उसको मैसेज करूंगी-
इत्र तो यूं ही इतराते हैं,
रिश्ते तो आप जैसों से ही महकते हैं.” उसने खुद से कहा था.
एक आंख के परदे ने दूसरी आंख को भी बंद होने पर मजबूर कर दिया था, पर शायद समझदारी और ज्ञान की तीसरी आंख खुल गई थी.
जब हम ध्यान लगाने या किसी और वजह से अपनी आंखों को बंद कर लेते हैं. तो हम दुनिया से कट जाते हैं और ध्यान लग जाने से हम अंतर्मन में केंद्रित हो जाते हैं, ऐसे में अनायास ही हमारी समझदारी और ज्ञान की तीसरी आंख खुल जाती है. सम्भवतः मनीषा के साथ भी ऐसा ही हुआ था.