मैं कौन ??? भूल गया इंसान
अपनी दोस्ती और रिश्तेदारियां
अपनी मज़बूरी और जिम्मेवारिया
अपने व्यवसाय की परेशानियां
कुछ समाज के नाम पर बेड़ियाँ
कुछ धार्मिक औपचारिकताएं
सरकारी कायदे कानून की भरमारियाँ
अगर कुछ नहीं तो कुदरत की आपदाएं
इतना कुछ झेलते इंसान की संवेदनाएं—
चूर चूर हो जाती हैं —
इतना टूट जाता है यह कमजोर इंसान
न जाने कितने टुकड़ो में बट जाता है
अपने लिए उसके पास कुछ बचता ही नहीं,
और यह बेचारा इंसान —
जीते जी अपने आप को ही भूल जाता है..
— जय प्रकाश भाटिया