श्रध्येय अजर अमर आत्मा श्री गोपाल दास नीरज जी की स्मृति में
एक युग बीता, इतिहास रचकर चला गया।
तिशनगी बाकी रही, वो समन्दर चला गया।
जिस को पढ के,सुन के, हम ने गढना सीखा,
शब्दों का वो चित्रकार वो रहबर चला गया।
गीतों के मदिर फूलों से महकेगी ये दुनिया,
कलियों पे गुंजन करता मधुकर चला गया।
दुनिया थी सराय, बस चार दिनों का था बसेरा,
कारवां गुजर गया, वो अपने घर चला गया।
शब्दों के मोती चुन के ,उस ने गूँथी थी माला,
ह्रदय के तारों को छेड,वो जादूगर चला गया।
— ओमप्रकाश बिन्जवे ” राजसागर”