गीतिका/ग़ज़ल

उस  पारे  बरसे

उस  पारे  बरसे , हम  से  निर्मोही  हो  गए बादल।
तरस  रही  अँखियाँ,  के  परदेशी  हो  गए बादल।
पहाड़ों   से  जूझ   रहे,  करते   नई   अठखेलियाँ,
पुरवाई की  सुनते  नही, विद्रोही  हो  गए  बादल।
हम तो  समझे  के  आये  है  तो  ठहरेंगे चार दिन,
दो पल में ही ओझल  हुए , बटोही हो गए बादल।
प्यासे की सुने नही,बिन  माँगे भर दे  ताल तलैया,
बंजर  धरती  कहे  के  मनमौजी  हो  गए  बादल।
परदेशी  की  तकती अँखियों  से बहे सावन भादों
गरजत   बरसत   संग  ,विरही   हो   गए   बादल।
— ओमप्रकाश बिन्जवे ” राजसागर”

*ओमप्रकाश बिन्जवे "राजसागर"

व्यवसाय - पश्चिम मध्य रेल में बनखेड़ी स्टेशन पर स्टेशन प्रबंधक के पद पर कार्यरत शिक्षा - एम.ए. ( अर्थशास्त्र ) वर्तमान पता - 134 श्रीराधापुरम होशंगाबाद रोड भोपाल (मध्य प्रदेश) उपलब्धि -पूर्व सम्पादक मासिक पथ मंजरी भोपाल पूर्व पत्रकार साप्ताहिक स्पूतनिक इन्दौर प्रकाशित पुस्तकें खिडकियाँ बन्द है (गज़ल सग्रह ) चलती का नाम गाड़ी (उपन्यास) बेशरमाई तेरा आसरा ( व्यंग्य संग्रह) ई मेल opbinjve65@gmail.com मोबाईल नँ. 8839860350 हिंदी को आगे बढ़ाना आपका उद्देश्य है। हिंदी में आफिस कार्य करने के लिये आपको सम्मानीत किया जा चुका है। आप बहुआयामी प्रतिभा के धनी हैं. काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है ।