धर्म ,जाति और अब वंशवाद
इस देश को अब तक सबसे ज्यादे नुकसान पहले ‘धर्मांधता ‘ने पहुँचाया फिर ‘जातिवाद’ ने और अब आज की ‘सिद्धांत विहीन’ राजनीति में ‘सर्वाधिक ‘नुकसान यहाँ नेता का बेटा ही उसका उत्तराधिकारी बनेगा की ‘वंशवादी’ तुच्छ राजनीति ने देश का बेड़ा गर्क कर दिया है। इस देश में केवल वामपंथी दलों को छोड़कर अन्य सभी राजनैतिक दलों में आपस में कोई राजनैतिक सिद्धांत में मतभिन्नता ही नहीं है ! सभी केवल व्यक्तिगत आलोचना करके, एक-दूसरे पर कीचड़ उछालकर, चरित्रहनन करके ‘अपनी लकीर बड़ी ‘करते हैं। इनका चुनावी घोषणापत्र को सूक्ष्मता से पढ़िए, सारे एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं, एक ‘साँपनाथ ‘तो दूसरा ‘नागनाथ ‘है, एक ‘छेदीलाल ‘है तो दूसरा ‘सुराखीलाल ‘, कोई सैद्धांतिक मतभेद नहीं पूर्णतः एकात्मवाद।
आपने सही लिखा है ‘जो जीता वही सिकंदर’ चूँकि कांग्रेस की लुटिया डूब रही है, इसलिए राहुल गांधी ‘खलनायक’ परन्तु जगन्नाथ रेड्डी, और नवीन पटनायक जीत रहे, इसलिए वे ‘नायक’ यह दोगली नीति क्यों ? इसी देश में ऐसा क्यों है कि ‘नेता का बेटा भी नेता’ अन्य देशों में एक-आध अपवादों को छोड़कर यह परंपरा नहीं के बराबर है, क्योंकि हम भारतीय ‘व्यक्ति पूजा ‘ और ‘सांमतवादी ‘ व्यवस्था के उपासक हैं, यहाँ सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी राजाओं की सैकड़ों पीढ़ियाँ इस देश पर शासन कर गईं हैं, उसका असर तो रहेगा ही।
— निर्मल कुमार शर्मा