निछावर
महाकवि श्री गोपाल दास नीरज जी की स्मृति में ।
आंखों में अश्क दे के, कारवां गुज़र गया।
दर्पन दिखा के सबके दिलों में उतर गया।
पंछी नयन के जागते हैं, किसकी आस में,
शबे-ग़म की तीरगी में, ढूंढता पहर गया।
आया था अज़नबी सा, दुनियां की भीड़ में,
जाते हुये कदमों के निशां, छोड़कर गया।
पल कल्प सा गुज़ारा, आहों के साये में,
जैसे के सिसकियों की, छांव में ठहर गया।
जीवन जहां खतम है, फिर वहीं शुरु किया,
सूनी सी निगाहें लिये, चलता डगर गया।
छोड़ा यहां है जो भी, अल्फाज़ उसी के,
करते हैं निछावर के, नयन अश्क भर गया।
हलचल मचा के घूम के, दिलों के भंवर में ,
लगा के जिंदगी का अंतिम , चक्कर गया।
— पुष्पा “स्वाती”