प्यास बुझाने प्यार की
प्यास प्यार की जग-मोहन ही,बुझा सके संसार की ।
वीणा आयी बनकर मुरली, प्यास बुझाने प्यार की ।।
महक उठा तब कोना-कोना,
जब वीणा साँसों पर छाई ।
कली-कली तब खिली हुई थी,
बागों में छाई तरुणाई ।।
अंतर्मन में बसी हुई थी, झाँकी ये शृंगार की ।
वीणा आयी बनकर मुरली, प्यास बुझाने प्यार की ।।
बनी बाँसुरी वीणा आयी,
तब से मन मे गीत घुले ।
गीत उकेरे मेरे मन में,
प्रेम-प्यार की रीत घुले ।।
आ बैठी अधरों पर आकर, तान सुना मल्हार की ।
बनकर मुरली वीणा आयी,प्यास बुझाने प्यार की।।।
युगों युगों से है ये रिश्ता,
एक अनोखा प्यार लिये ।
सुख-दुख में वीणा की झँकृत,
भरे हृदय में प्यार प्रिये ।।
ऐसी गंध बसी है मन में, जैसी सुमन बयार की ।
बनकर मुरली वीणा आयी,प्यास बुझाने प्यार की ।।