गीत/नवगीत

प्यास बुझाने प्यार की

प्यास प्यार की जग-मोहन ही,बुझा सके संसार की ।
वीणा आयी बनकर मुरली, प्यास बुझाने प्यार की ।।

महक उठा तब कोना-कोना,
जब वीणा साँसों पर छाई ।
कली-कली तब खिली हुई थी,
बागों में छाई तरुणाई ।।

अंतर्मन में बसी हुई थी, झाँकी ये शृंगार की ।
वीणा आयी बनकर मुरली, प्यास बुझाने प्यार की ।।

बनी बाँसुरी वीणा आयी,
तब से मन मे गीत घुले ।
गीत उकेरे मेरे मन में,
प्रेम-प्यार की रीत घुले ।।

आ बैठी अधरों पर आकर, तान सुना मल्हार की ।
बनकर मुरली वीणा आयी,प्यास बुझाने प्यार की।।।

युगों युगों से है ये रिश्ता,
एक अनोखा प्यार लिये ।
सुख-दुख में वीणा की झँकृत,
भरे हृदय में प्यार प्रिये ।।

ऐसी गंध बसी है मन में, जैसी सुमन बयार की ।
बनकर मुरली वीणा आयी,प्यास बुझाने प्यार की ।।

लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

जयपुर में 19 -11-1945 जन्म, एम् कॉम, DCWA, कंपनी सचिव (inter) तक शिक्षा अग्रगामी (मासिक),का सह-सम्पादक (1975 से 1978), निराला समाज (त्रैमासिक) 1978 से 1990 तक बाबूजी का भारत मित्र, नव्या, अखंड भारत(त्रैमासिक), साहित्य रागिनी, राजस्थान पत्रिका (दैनिक) आदि पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित, ओपन बुक्स ऑन लाइन, कविता लोक, आदि वेब मंचों द्वारा सामानित साहत्य - दोहे, कुण्डलिया छंद, गीत, कविताए, कहानिया और लघु कथाओं का अनवरत लेखन email- [email protected] पता - कृष्णा साकेत, 165, गंगोत्री नगर, गोपालपूरा, टोंक रोड, जयपुर -302018 (राजस्थान)