संस्मरण

अतीत की अनुगूंज – 6 : ब्रेकफास्ट

सुबह बिली रॉस जल्दी आ गया। मगर पीछे पीछे उसकी माँ उसका बस्ता लेकर गुस्से से लाल होती ,आ धमकी।
             ” खा खा के दो हाथ ऊँचा हो गया है।  तेरा बस्ता मुझे लाना पड़ा। ”
शायद उसका इरादा बालक को मारने का था मगर मुझको वहां देखकर वह चुप हो गयी।  बस्ता पटक कर और दो चार बातें उसे सुनाईं। बिली सहमा हुआ टुकुर टुकुर मुझको देखता रहा ,मानो उसको मेरी प्रतिक्रया की अधिक चिंता थी।  .
” ऐसा क्या कर दिया इसने ? शांत हो जाओ। मुझे बताओ। ”
बिली की माँ मुश्किल से २२ /२४ वर्ष कीो  रही होगी।  पतली दुबली इकहरे बदन की। बिली के अलावा भी उसके तीन बच्चे थे।
बोली ,” मैं इसके खाने से तंग आ गयी हूँ। सुबह पांच बजे उठ जाता है और चराई शुरू कर देता है। कल इसने सारा पैकिट डाइजेस्टिव बिस्किट का खा डाला।  इसके बाप को रोज चाय के संग वही चाहिए। नाश्ते की इन्तजार नहीं करता।  आज यह मेरा बेबी के फेरेक्स बिस्किट खा गया।  मैं इतना कैसे एक ही को खिला दूँ ? ” कहते कहते वह रो पडी।
       बिली रॉस बढ़ता बच्चा ,केवल पांच वर्ष का था।  कद उसका पूरी क्लास में सबसे लंबा था। बेचारी माँ को धीरज बंधा कर मैंने विदा किया।  मेरी अलमारी में कुछ न कुछ खाने का सामान जरूर रखा होता था।  मैंने बिली को एक सेब और दूध पिलाया। कुछ बिस्कुट खाने को दिए। अभी समय बाकि था घंटी बजने में।  उसको पढ़ना बिलकुल नहीं आता था।  माँ एक सुपर स्टोर में सफाई करती थी। बाप कहीं बोझा उठवाता था।  कमाइ का पौन हिस्सा शराब में पी जाता था।  दो कमरों का सरकारी मकान और चार लड़के।
       मैंने बिली को रोज़ अपने पास से ब्रेकफास्ट खिलाना शुरू कर दिया।  दूध तो सरकारी ही होता है सब बच्चों के लिए। सुबह के कॉफी ब्रेक में बांटा जाता है। फल और कॉर्नफ़्लेक्स मैंने लाकर रख लिए। बिस्कुट का पैकेट भी।  इसके एवज में बिली मुझसे अपनी किताब पढ़ने लगा। उसको जल्दी ही अक्षर ज्ञान भी हो गया।
  मैंने स्टाफरूम में इसकी चर्चा की तो पता चला कि अन्य  अध्यापिकाएं भी इस समस्या से दो चार हो चुकी थीं। यह भी पता चला कि हमारी सहायिकाएं भी बच्चों को अपनी जेब से खिला पिला लेती थीं व कुछ बच्चों की माएँ गरीब बच्चों को ब्रेकफास्ट खिलाती थीं चुपके से।
        बात अभिभावकों की सभा तक पहुंचाई गयी और तथ्यों की पुष्टि हुई।  आंकड़े एकत्र किये गए और प्रधान अध्यापिका तक बात पहुंची।  सहायक स्त्रियों का मत था कि यूं इन बच्चों को मानसिक हीनता का आभास होगा और वह इसे मानहानि समझेंगे। तब यह तय हुआ की इसको ब्रेकफास्ट क्लब बना दिया जाए और माँ बाप की सहमति से उन बच्चों को नाश्ता दिया जाये जो बेहद गरीब हैं।  स्कूल के १५० बच्चों में से करीब तीस ऐसे बालक निकले जो भूखे पेट या केवल चाय पर जीवित रहते थे जब तक स्कूल  की मिड डे मील  न उनके पेट में जाए।
        इन बालकों को सुबह आधा घंटा पहले स्कूल आना अनिवार्य कर दिया गया।  एक बड़े कमरे में उनको बैठा कर उबला अंडा दो टोस्ट ,एक फल और दूध दिया जाने लगा।  तरह तरह के सीरियल भी मंगवाए गए क्योंकि सबको अंडा अच्छा नहीं लगता।  इस सामान का पैसा स्कूल भर के अभिभावकों ने स्वेच्छा से एकत्र किया। वह भी गुप्त दान की तरह। इसमें अध्यापिकाओं और सहायिकाओं ने भी चन्दा दिया।
           जब क्षेत्र के अन्य स्कूलों की प्रधान अध्यापिकाओं की मीटिंग हुई तो उसमे यह प्रस्ताव सरकार के आगे रखा गया। दस स्कूल इसमें शामिल हुए। सर्कार ने समस्या को समझा और अगले ही वर्ष सरकारी खर्च मिलने लगा। यही नहीं ,जो स्त्रियां अपना समय दे रही थीं खिलाने पिलाने और फिर समेटने  सफाई आदि के लिए उनको सही मुआवज़ा भी दिया गया।
             अब बीस वर्षों में यह एक  देशव्यापी  सुनिश्चित योजना है जिसकी पूरी जिम्मेदारी सरकार उठाती है।  लंदन क्या अन्य शहरों में भी प्रत्येक सरकारी स्कूल को इस योजना से लाभ मिला है।
                                                                                                इति :
कादम्बरी मेहरा , लंदन

*कादम्बरी मेहरा

नाम :-- कादम्बरी मेहरा जन्मस्थान :-- दिल्ली शिक्षा :-- एम् . ए . अंग्रेजी साहित्य १९६५ , पी जी सी ई लन्दन , स्नातक गणित लन्दन भाषाज्ञान :-- हिंदी , अंग्रेजी एवं पंजाबी बोली कार्यक्षेत्र ;-- अध्यापन मुख्य धारा , सेकेंडरी एवं प्रारम्भिक , ३० वर्ष , लन्दन कृतियाँ :-- कुछ जग की ( कहानी संग्रह ) २००२ स्टार प्रकाशन .हिंद पॉकेट बुक्स , दरियागंज , नई दिल्ली पथ के फूल ( कहानी संग्रह ) २००९ सामायिक प्रकाशन , जठ्वाडा , दरियागंज , नई दिल्ली ( सम्प्रति म ० सायाजी विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी एम् . ए . के पाठ्यक्रम में निर्धारित ) रंगों के उस पार ( कहानी संग्रह ) २०१० मनसा प्रकाशन , गोमती नगर , लखनऊ सम्मान :-- एक्सेल्नेट , कानपूर द्वारा सम्मानित २००५ भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान हिंदी संस्थान लखनऊ २००९ पद्मानंद साहित्य सम्मान ,२०१० , कथा यूं के , लन्दन अखिल भारत वैचारिक क्रान्ति मंच सम्मान २०११ लखनऊ संपर्क :-- ३५ द. एवेन्यू , चीम , सरे , यूं . के . एस एम् २ ७ क्यू ए मैं बचपन से ही लेखन में अच्छी थी। एक कहानी '' आज ''नामक अखबार बनारस से छपी थी। परन्तु उसे कोई सराहना घरवालों से नहीं मिली। पढ़ाई पर जोर देने के लिए कहा गया। अध्यापिकाओं के कहने पर स्कूल की वार्षिक पत्रिकाओं से आगे नहीं बढ़ पाई। आगे का जीवन शुद्ध भारतीय गृहणी का चरित्र निभाते बीता। लंदन आने पर अध्यापन की नौकरी की। अवकाश ग्रहण करने के बाद कलम से दोस्ती कर ली। जीवन की सभी बटोर समेट ,खट्टे मीठे अनुभव ,अध्ययन ,रुचियाँ आदि कलम के कन्धों पर डालकर मैंने अपनी दिशा पकड़ ली। संसार में रहते हुए भी मैं एक यायावर से अधिक कुछ नहीं। लेखन मेरा समय बिताने का आधार है। कोई भी प्रबुद्ध श्रोता मिल जाए तो मुझे लेखन के माध्यम से अपनी बात सुनाना अच्छा लगता है। मेरी चार किताबें छपने का इन्तजार कर रही हैं। ई मेल [email protected]