पर्यावरण

आखिर अन्न और जल की बर्बादी हम कब रोकेंगे ?

मानव जीवन { लगभग सभी जीव जगत } के लिए भी ,के सांसों के स्पंदन और जीने के लिए सबसे जरूरी और मूलभूत तीन आवश्यक चीजें क्रमशः हवा ,पानी और भोजन है । आधुनिक सभ्यता और विकास के साथ-साथ क्रमशः प्रथम दो  चीजें मानवकृत कृत्यों से प्रदूषित और विनष्ट होती जा रहीं हैं ,औद्योगिक क्रांति के बाद ये दोनों चीजें प्रदूषण की अधिकतम सीमा तक प्रदूषित होती चली गईं हैं । मानव प्रजाति सहित समस्त जैवमण्डल के लिए सबसे अत्यावश्यक उसको सांस लेने के लिए प्राण का आधार ऑक्सीजन है। यह बात बहुत पहले ही वैज्ञानिक तथ्यों से यह सिद्ध हो चुका है कि यह ऑक्सीजन वायुमण्डल में उसके लगभग पाँचवे हिस्से के बराबर है । मानव प्रजाति अपने ‘कथित विकास ‘के नाम पर यथा कृषि ,अपने आवास और कल-कारखानों के लिए अपने सभ्य होने के साथ-साथ ऑक्सीजन के सबसे सबसे बड़े श्रोत प्राकृतिक जंगलों का सर्वाधिक विध्वंस करता आया है । पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार अब तक मानवप्रजाति ने जंगलों ,पेड़ों आदि का इतना विध्वंस किया है ,कि प्रकृति के लिए वातावरण में सभी जीवों को जीने के लिए अत्यावश्यक ऑक्सीजन की मात्रा { सम्पूर्ण वायुमंडल में 1/5 भाग रहने का संतुलन गड़बड़ होने लगा है } ,इसलिए अभी हाल ही में पर्यावरण वैज्ञानिकों ने इस ऑक्सीजन ‘असंतुलन ‘पर चिंतित होकर ,गहन शोधकर इस दुनिया को आगाह करते हुए यह सलाह दिया है कि पेड़ों ,वनों और जंगलों कि अब तक इतनी अपूरणीय क्षति हो चुकी है कि उसकी क्षतिपूर्ति हेतु कम से कम अपने देश भारत के क्षेत्रफल के लगभग तीन गुने क्षेत्रफल की धरती पर सघन जंगल लगाने की ‘शीघ्र ‘और ‘ईमानदार ‘ कोशिश की सख्त जरूरत है , ताकि विगत् में हो चुके पर्यावरणीय क्षति की कुछ क्षतिपूर्ति हो सके {जबकि वर्तमान में वास्तविकता यह है कि यहाँ वृक्षारोपण के नाम पर पेड़ लगाने का उपक्रम होता है ,उसमें मात्र 10 प्रतिशत ही बड़े पेड़ बन पाते हैं ,परन्तु दूसरी तरफ ‘कथित आधुनिक विकास ‘और ‘सड़क चौड़ीकरण ‘के नाम पर उससे 10 गुने पुराने और हरे-भरे वृक्षों को निर्ममतापूर्वक काट डाला जाता है }
       इसी प्रकार समस्त जैवमण्डल की दूसरी सबसे बड़ी जरूरत मीठा पीनेयोग्य पानी है ,जो इस पृथ्वी पर विद्यमान पानी के सम्पूर्ण भंडार में पीने योग्य पानी की मात्रा केवल एक {1} प्रतिशत ही है , वह भी मानवोचित कुकृत्यों से इस कदर तेजी से प्रदूषित और दोहित किया जा रहा है कि उसके सबसे बड़े श्रोत ऊँचे पहाड़ों पर व उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव पर लाखों साल से बर्फ के रूप में जमें बर्फ के लाखों ‘ग्लेशियरों ‘ के अस्तित्व पर ही गंभीर संकट के बादल मंडरा रहे हैं , जो दुनियाभर की हजारों नदियों के भी उद्गम श्रोत हैं इसलिए निकट भविष्य के कुछ सालों में विश्व की हजारों नदियों के ‘सूख ‘जाने या ‘विलुप्त ‘हो जाने का  गंभीर ख़तरा मंडरा रहा है { इस दुःस्थिति से बहुत सी नदियां तो वर्तमान में ही समाप्त भी हो चुकीं हैं ,मर चुकीं हैं } ,इसके अतिरिक्त पेय जल का सबसे बड़े श्रोत वर्षा का पानी है , वर्षा के पानी के संचयक ,इस देश के लाखों गड्ढे , जोहड़ ,ताल-तलैया ,बावड़ी , कुँआ , पोखर , झील आदि भी कथित आधुनिक विकास और मानव के लालच और हवश के फलस्वरूप अतिक्रमण की भेंट चढ़कर अपना अस्तित्व गंवा चुके हैं ,जिससे जिस दर से भूगर्भीय जल का अकूत दोहन किया जा रहा है , उसके हजारवें हिस्से के बराबर भी वर्षा का जल पृथ्वी के भूगर्भीय जल को समृद्ध नहीं कर पा रहा है { जल की रिचार्जिंग नहीं हो रही है }, इसके फलस्वरूप भारत सहित दुनियाभर के अधिकांश देशों में पेयजल के अभाव में गंभीर स्थिति बनती जा रही है { पिछले साल दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन और अभी पिछले दिनों भारत के शहर चेन्नई में पानी के अकाल की दुःखद घटना इसकी गवाह है }
      इसी प्रकार मानवप्रजाति सहित समस्त जैवमण्डल के जीवों के भोजन के लिए { मांसाहारी प्राणियों को छोड़कर ,वैसे मांसाहारी प्राणी भी उन शाकाहारी जन्तुओं पर ही निर्भर हैं ,जो शाकाहारी भोजन करते हैं } ,अन्न की अत्यन्त आवश्यकता है । दुःखद है भारत सहित दुनियाभर में विभिन्न कारणों से , कहीं जानबूझकर ,कहीं नासमझी और कहीं मूर्खता से ,{भारत जैसे देश में भ्रष्टाचार और कुव्यवस्था से } उत्पादित अन्न ,सब्जियों और ,फलों आदि का लगभग आधा भाग नष्ट हो जाने को अभिषप्त है ,जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार विश्व में हर आठवा व्यक्ति रात में खाना न मिलने से ‘भूखा सो जाने ‘ को मजबूर होता है , संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य एवम् कृषि संगठन के ‘द स्टेट ऑफ फूड इनसिक्योरिटी इन वर्ल्ड ‘ की रिपोर्ट के अनुसार , ‘ भारत दुनिया में अपने अन्न के बम्पर उत्पादन के बावजूद भी राजनैतिक व प्रशासनिक लापरवाही ,उपेक्षा और कुव्यवस्था से सबसे ज्यादे भूखमरी के शिकार ‘भारतीय ‘ लोग ही हैं । ‘ संयुक्त राष्ट्र संघ की यह कटुयथार्थ टिप्पणी भारत के कथित आर्थिक महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षा पर एक ‘प्रश्नचिन्ह ‘लगा देता है !
     अभी हाल ही में भारत सरकार के वर्तमान ग्रामीण विकास मंत्री स्वयं भारतीय संसद के राज्यसभा में यह लिखित में स्वीकार कर चुके हैं कि ,’ वैश्विक भूख सूचकांक में ‘वेल्थहंगर हिल्फे एंड कंसर्न वर्ल्डवाइड ‘ की रिपोर्ट के अनुसार भारत इस भूख सूचकांक में युद्ध और आतंकवाद से जर्जर अफगानिस्तान और पाकिस्तान तथा दुनिया के अत्यंत गरीब माने जाने वाले अफ्रीका के सहारा देशों से भी , दयनीय स्थिति में है ,वह दुनिया के कुल 119 देशों की सूची में 103 वें दयनीय पायदान पर है ! वर्तमान में सत्तारूढ़ दल की सरकार के ही एक सांसद ने भी राज्यसभा में लिखित में यह जानकारी देते हुए देश को बताया है कि हम भारत के लोग एक साल में इतना अन्न ,फल ,सब्जियां या खाद्य पदार्थों को बर्बाद कर देते हैं ,जितना इंग्लैंड के लोग एक साल खाते हैं या आस्ट्रेलिया महाद्वीप का कुल अन्न उत्पादन है ! उन्होंने आगे बताया कि एक तरफ हम ,हमारे समाज और हमारी सरकारों की लापरवाही ,असंवेदनशीलता और कुव्यवस्था की वजह से इतने अन्न की बर्बादी होती है , दूसरी तरफ हमारे देश में ही रूस की आबादी से थोड़े कम 19 करोड़ लोग रात में भोजन न मिलने से ‘भूखे ‘ ही सो जाते हैं !
     क्या हम भारतीय लोग अपने देश की वायु की शुद्धता के लिए ,अब तक हुए भारतीय वनों के विनाश की क्षतिपूर्ति के लिए कम से कम मध्यप्रदेश के क्षेत्रफल के बराबर भूमि पर , वर्षा के ऋतु में { 5 जून को कथित विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में भारत की 48 डिग्री सेंटीग्रेड पर  पश्चिमी देशों के अंधानुकरण कर वृक्षारोपण न करके } ईमानदारी से वृक्षारोपण करके उन्हें बड़ा होने तक पुत्रवत् पालनकर बड़ा करें । कम से कम हरेक भारतीय परिवार एक पेड़ लगाकर ,उसे बड़ा करे ,का प्रण लेकर तत्परता और ‘देशहित ‘तथा ‘समाज हित ‘ में इस पुनीत और पावन कर्तव्य का निर्वहन करें।
       इसी प्रकार जल की शुद्धता और संचयन के लिए अपनी प्राणतुल्य नदियों के अस्तित्व को बचाने के लिए कारों ,टैक्सियों का उपयोग यथासंभव कम से कम उपयोग करके सार्वजनिक परिवहन सेवाओं यथा सीएनजी बसों ,ट्रामों ,मेट्रो ,ट्रेनों आदि का अधिकाधिक उपयोग करें ताकि कार्बनडाईऑक्साइड और अन्य हानिकारक गैसों के उत्सर्जन से होनेवाली ग्लोबल वार्मिंग कम होने से नदियों के उद्गम स्थल गलेशियरों का पिघलना कम हो ! तीर्थयात्रा के नाम पर हिमालय में चौड़ीसड़क बनाने के नाम पर वहाँ लाखों पुराने वृक्षों को निर्ममतापूर्वक काटने का सिलसिले पर भी विराम लगना ही चाहिए । प्रश्न ये है कि जब हमारी नदियाँ बचेंगी तभी हम बचेंगे ,तभी तो हम तीर्थयात्रा भी करेंगे ! इसके अतिरिक्त अपनी माँतुल्य व जीवनदायिनी नदियों में फैक्ट्रियों से केमिकल युक्त विषाक्त पानी और शहरों के मलमूत्रादि युक्त ‘सीवर ‘का पानी परिशोधित करके ही हर हाल में डाला जाय { हमें यूरोप के लोगों से प्रेरणा लेनी चाहिए जो मिल-जुलकर अपने ईमानदार सद् प्रयासों से ,आज से 50 साल पूर्व तक अत्यंत प्रदूषित अपनी सबसे बड़ी और कई देशों से प्रवाहित होकर जाने वाली ‘राईन नदी ‘ को आज एकदम स्वच्छ और उसके मूलस्वरूप में प्रवाहित करके समूचे विश्व को एक नमूने के तौर पर प्रामाणित करके दिखा दिया है ,कि अगर ईमानदारी और सत्यनिष्ठा से काम किया जाय तो कोई भी काम असंभव नहीं है , यूरोप के लोग हम लोगों जैसे ढ़ोंगी और अपने कर्तव्य के प्रति संदिग्ध निष्ठा वाले नहीं हैं ,जो एक तरफ नदियों में ‘सीवर की गंदगी ‘डालते रहें और दूसरी तरफ प्रतिदिन शाम को दिखावे के लिए भव्य ‘आरती दिखाने ‘ का ‘पाखण्ड ‘और ‘फूहड़तापूर्ण ‘कृत्य करते हों  }
      इसके अतिरिक्त हमें अन्न के एक -एक दाने और खाद्य पदार्थों की सुरक्षा और उसे सहेजने को हम ,हमारा समाज और हमारी सरकारें कृतसंकल्पित हों ,ताकि इस देश में अन्न का एक दाना और खाद्य पदार्थों एक अंश भी विनष्ट न हो ताकि भारत का एक भी व्यक्ति रात में भूखा न सोए । यहाँ प्रायः सरकारों के कर्णधार अपनी सारी उर्जा और शक्ति केवल सत्ता में रहने के लिए जोड़-तोड़ करने में लगा देते हैं ,इस कार्य के अतिरिक्त भी उनका काम ‘जनता के हित ‘और ‘उक्त जनकल्याणकारी ,पुनीत कार्य ‘करने की भी है ,केवल सत्ता में बने रहकर जनकल्याण के कार्यों से विमुख होकर सत्ता पर ज्यादे दिन शासन करने का कोई औचित्य और सार्थकता ही नहीं है । यह बात हमारे सत्ता के कर्णधारों को संजीदगी से सोचनी ही चाहिए ।
 
— निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

"गौरैया संरक्षण" ,"पर्यावरण संरक्षण ", "गरीब बच्चों के स्कू्ल में निःशुल्क शिक्षण" ,"वृक्षारोपण" ,"छत पर बागवानी", " समाचार पत्रों एवंम् पत्रिकाओं में ,स्वतंत्र लेखन" , "पर्यावरण पर नाट्य लेखन,निर्देशन एवम् उनका मंचन " जी-181-ए , एच.आई.जी.फ्लैट्स, डबल स्टोरी , सेक्टर-11, प्रताप विहार , गाजियाबाद , (उ0 प्र0) पिन नं 201009 मोबाईल नम्बर 9910629632 ई मेल [email protected]