गीत – बेटी
बाबुल के आँगन की बेटी , न हुई कभी परायी है
जुदा होने की जो सोच लूँ , दिल दे तभी दुहाई है …..
छोटी गुड़िया है यह बेटी , यह कितनी भोली है सुन
अँगना में खेली है यह तो , गुड़ की भेली है सुन
वह खुशी अभी घर – आँगन में , हर ओर अभी छायी है …..
बाबुल के आँगन की बेटी , न हुई कभी पराई है …..
मार किलकारी थी लुभाती , आवाज़ हमें भाती थी
मुस्कान प्यारी थी सुहाती , मैया नाज़ उठाती थी
धीरे – धीरे बिटिया लो अब , बड़ी रही सुखदायी है …..
बाबुल के आँगन की बेटी , न हुई कभी पराई है …..
आँसू तो झर – झर झरते हैं , दिल को घायल करते हैं
छोड़ जाएगी घर को अभी , हम तो आहें भरते हैं
बाबुल के अँगना से बेटी , ले रही अब विदाई है …..
बाबुल के आँगन की बेटी , न हुई कभी पराई है …..
पायी बेटी है जब से ही , बढ़ी किस्मत हमारी तो
पुण्य कोई कमाया होगा , पायी बेटी न्यारी जो
बिछुड़ेगी अब दिल से बिटिया , आँखें ही भर आयी हैं …..
बाबुल के आँगन की बेटी , न हुई कभी पराई है …..
लाख दुआएँ देते बेटी , सबकी ही लाज निभाये
सितारे बिछें सभी राह में , सारे ही सुख वह पाये
दिल का टुकड़ा है बिटिया तो , दिल में रही समायी है …..
बाबुल के आँगन की बेटी , न हुई कभी पराई है …..
जुदा होने की जो सोच लूँ , दिल दे तभी दुहाई दे …..
बाबुल के आँगन की बेटी , न हुई कभी पराई है …
— रवि रश्मि ‘अनुभूति ‘