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वर्तमान में प्रेम विवाह वह भी भारतीय संस्कृति में किसी चुनौती से कम नहीं

वर्तमान में प्रेम विवाह वह भी भारतीय संस्कृति में किसी चुनौती से कम नहीं

        वर्तमान में प्रेम विवाह वह भी भारतीय संस्कृति में किसी चुनौती से कम नहीं है।इनमें बढ़ती संख्या-असफलताओं की मात्रा व बाद में लड़की को ही होने वाला नुकसान कैसे रोका जा सकता है।इसके लिए कौन जिम्मेदार है।कहां से यह प्रदूषण हमारे समाज की व्यवस्था मान्यता को दीमक सा चट कर रहा है।विषय पर कुछ विद्वानों से विचार मंगाये जोकि आपके सामने प्रस्तुत हैं :-

मुंबई से अलका पाण्डेय का कहना है कि प्रेम जिसकी परिणति विवाह में होती है वह वास्तव में प्रेम नहीं होता, महज शारीरिक आकर्षण होता है।प्रेम और विवाह सिक्के के दो पहलू होते हैं।कोई जरूरी नहीं कि एक प्रेमी अच्छा पति साबित हो या एक प्रेमिका अच्छी पत्नी साबित हो।विवाह के पहले एक ही व्यक्ति के गुणों पर रीझकर उसके साथ जीवनयापन का निर्णय करते हैं लेकिन भारत में विवाह के बाद पत्नी को पति के सारे परिवार से तालमेल बनाकर चलना पड़ता है।पति को भी पत्नी के साथ अपने परिवार की जिम्मेदारी निभानी होती है।प्रेम तभी सफल होता है जब इसका आधार त्याग प्रतिबद्धता समर्पण समझौता हो।जोकि आधुनिक युवा वर्ग में देखने को नहीं मिलता, इसलिए विवाह पूर्व देखे गए दिवास्वप्न विवाह के बाद धराशायी होते ही पत्नी विद्रोह करती है परिणाम तलाक होता है।

कुछ समय पहले तक चाहे प्रेमविवाह हो या तयशुदा लड़कियों को ससुराल में बहुत कुछ सहना पड़ता था।पूरी जिन्दगी ही ऐसे काट देती थीं।अब समय बदल गया है लड़कियां पहले जैसी नहीं रह गयी हैं उनके तेवर बदल गये हैं।शिक्षा और नौकरी ने उन्हें शायद जरूरत से अधिक स्वार्थी बना दिया है।यही कारण है कि वो शादी तो करती हैं पर सिर्फ अपने पति के साथ अकेले रहना चाहती हैं आजकल की लड़कियों को परिवार और बच्चे नहीं चाहिए यही हकीकत है और मेरा मानना है कि यह बहुत गम्भीर विषय है इस पर सोचना और मनन करना बेहद जरूरी है।

जबलपुर से विवेक रंजन श्रीवास्तव का मानना है कि दो युवाओं में प्यार तो हो ही जाता है।पर विवाह केवल प्यार नहीं हैं सफल विवाह के लिए आपसी बातचीत, जिम्मेदारी, विश्वास, एक दूसरे का सम्मान और वफादारी आवश्यक है।अब परिवार बड़े नहीं होते जो भी होते हैं उनमें शादी के बाद भी सम्बन्धों की मजबूती बनी रहे।जब यह सब समझ लें चैटिंग-मीटिंग और मोबाइल से बाहर आजायें तो शादी कर लें।

राजस्थान की गंगानगर सिटी से व्यग्र पाण्डे का मानना है कि पुराणों में कई प्रकार के विवाह ब्रह्म राक्षस पैशाच गन्धर्व प्रजापत्य आर्ष आदि का उल्लेख है।पहले का गन्धर्व विवाह आज का प्रेम विवाह है।श्रीकृष्ण और रूक्मिणी जी के विवाह को प्रेमविवाह को प्रेमविवाह की संज्ञा दे सकते हैं।पहले इस तरह के विवाह में आत्मिक प्रेम हुआ करता था।इसलिए यह किसी भी तरह से आदर्श विवाह से कम न होते थे और मृत्युपर्यन्त तक निभाये जाते था।

आजकल के तथाकथित प्रेमविवाह स्वार्थ,वासना,सौन्दर्य के प्रति लगाव आदि से होते हैं।उनमें विवाह का मूलतत्व आत्मिक प्रेम अंशमात्र भी नहीं होता।भारतीय संस्कृति विवाह पूर्व प्रेम के नाम पर लड़के लड़की के सम्बन्धों को मान्यता नहीं देती।आधुनिक शिक्षा के नाम पर यह स्वच्छन्द विचरण करने लगे हैं।माता-पिता ने भी अनदेखी कर रखी है।समाज व उसके रीति रिवाजों को तोड़ने में शान समझते हैं।संस्कृति का कोई बन्धन नहीं है।अपनी इच्छानुसार गुपचुप शादी भी कर लेते हैं।कहा जाये तो वो विवाह नहीं समझौता है और अधिक दिन टिक नहीं पाता।परिणामतः तलाक की स्थिति बन जाती है।

नासमझी के समझौते और वासना सौन्दर्य आधारित आकर्षण कम होना विघटन का कारण बनता है।अन्त में पछताने के अलावा कुछ न बचता।समाज की स्वीकृति दोनों परिवारों व लड़का-लड़की की सहमति से हुआ विवाह न केवल चिरस्थायी होता था वरन उसमें सुख और सहयोग की गारण्टी रहती थी।अपनी संस्कृति के प्रति बेरुखापन और पाश्चात्य संस्कृति के प्रति लगाव हमें संकटों के दलदल में ले जाता रहा है जो आने वाली संतति के लिए अच्छा नहीं है।अभी भी इस चुनौती से संभलने निपटने का समय है।हम उपाय के रूप में अपने परिवारों में भारतीय संस्कृति को जीवन्त रखें तथा अपने बच्चों को संस्कारवान बनायें।

उ0प्र0 के साहिबाबाद से सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा का मानना है कि आत्मीय प्रेम के बिना भी कोई विवाह सम्भव है क्या।जो विवाह अपने सभी परिजनों के साथ उनकी उपस्थिति में सम्पन्न होते हैं और जिनमें दो अस्तित्व अपना सबकुछ एक दूसरे को समर्पित करने का संकल्प लेते हैं उस संकल्प का निर्वहन क्या एक दूसरे को बिना प्रेम के आधार के किया जा सकता है।विवाह तो समाज द्वारा स्थापित और संवर्धित वह संस्था है जो प्रेम नामक संवेग पर टिकी है।कोई भी विवाह प्रेम को समर्पित भावना के बिना सफल या संभव नहीं हैं।भारतीय संस्कृति ही नहीं वृहद भारतीय समाज में विवाह का आधार प्रेम होता है।प्रेम अर्थात अपने अस्तित्व के साथ अपनी आशा-आकांक्षाओं में विलीन कर देना है।यहां विवाह का मूल तत्व ही प्रेम है।शरीर तो अगला पड़ाव है।समय के साथ शारीरिक आकर्षण भले ही धूमिल पड़ जाए परन्तु प्रेम तो प्रगाढ़ ही होगा।इसलिए यहां हर सफल विवाह प्रेम विवाह होता है।पति-पत्नी का अपना कोई स्वार्थ नहीं होता।वे एक दूसरे की सफलता-असफलता को अपनी सफलता-असफलता मानकर एक-दूसरे के पूरक बन जाते हैं।क्योंकि इस धरा पर पूर्ण तो कोई होता नहीं है।यही उनका प्रेम है और यही उनके विवाह का बन्ध है।इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे आपस में एक दूसरे के सम्पर्क में कैसे आये।जहां प्रथम परिचय किसी मानवीय स्वार्थ की आपूर्ति के आवेग में होता है वहां प्रेम का कोई स्थान  नहीं होता और विवाह नहीं सांसारिक समझौता होता है जो अक्सर टूट जाता है।

उ0प्र0 शाहजहांपुर पुवायां के कवि पत्रकार विजय तन्हा का कहना है कि आजकल के टीवी सीरियल युवा पीढ़ी को पथभ्रष्ट करने में बहुत ही बड़ी भूमिका अदा कर रहे हैं जिस पर कोई भी समाजसेवी संस्था व्यक्ति शासन या प्रशासन आपत्ति दर्ज कराकर रोक लगाने का प्रयास नहीं कर पा रहा है जिस कारण ही आज की युवा पीढ़ी द्वारा आए दिन गलत कदम उठाए जा रहे हैं और माता-पिता की अवहेलना करते हुए अपना विवाह कर लेने जैसे कदम उठा रहे हैं।

किसी भी घर आंगन से उसका बेटा या बेटी कोई गलत कदम उठा लेता है तो समाज यही कहता है कि इसको माता पिता से ही अच्छे संस्कार प्राप्त नहीं हुए ऐसे में यह सोचने का विषय है संस्कार कोई ऐसा तरल पदार्थ या चूर्ण नहीं है जिसका घोल बनाकर बच्चों को पिला दिया जाये और वह संस्कार वान कहलायें।ऐसा कौन मां बाप होगा जो चाहेगा कि हमारी संतान समाज में हमारी पगड़ी उछाले या हमारी बेइज्जती करे और हमें सर झुकाकर चलना पड़े। हर मां बाप अपने बच्चों को शिष्टाचार देते हुए सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।

मगर आज के समाज में पाश्चात्य सभ्यता फिल्में टीवी सीरियल इंटरनेट और मोबाइल का प्रदूषण इस प्रकार से फैला है जिसमें माता पिता की दी हुई शिक्षा बेटे बेटियों को बकवास नजर आती है एक समय वह था जब 18 या 20 साल की आयु में भी बेटे-बेटी अबोध रूप में ही जाने जाते थे मगर आज के माहौल में तो यही कहना पड़ेगा जब से इंटरनेट मेहरबान हुआ है देश का हर बच्चा जवान हुआ है।आजकल के बेटों का आवारापन बेटियों का परिधान व्यवहार किसी भी तरह से भारतीय संस्कृति को पोषित नहीं करता है।उल्टा माता-पिता की अनदेखी कुसंस्कार का ही पोषण है।

श्रीनगर पौड़ी से शम्भु प्रसाद भट्ट स्नेहिल कहते हैं आज जिस तरह से युवक युवतियों में बिना मां बाप की सहमति के प्रेमविवाह करने की बाढ़ जैसी आ गयी है।उससे दूरगामी परिणाम भी घातक होते जा रहे हैं।जवानी एक ऐसी उम्र है जिसमें कुछेक को छोड़कर अधिकांश बिना दूर दृष्टि के भावनाओं के ज्वार में बहकर अपने क्षणिक सुख की अभिलाषा में अपने अमूल्य जीवन व भविष्य को अंधकार में धकेल रहे हैं।जिसमें बाद में जब एक दूसरे पर परिवारिक जबावदारियों का बोझ बढ़ने लगता है तो प्यार जैसी भावना दूर होकर आपसी आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला प्रारम्भ हो जाता है।

बालिग जोड़ों के आपसी सहमति से किये गये प्रेम विवाह भले ही कानूनी वैधता प्राप्त हैं पर इसमें अधिकांश कम आयु व मात्र प्यार के बहकावे में हुए बाद में परेशानी झेलने को विवश होते हैं।उसमें भी दुखद पहलू यह है कि ज्यादा दुष्परिणाम युवतियों को भोगना पड़ता है।यही नहीं हमारी वैदिक संस्कृति भी दिन प्रतिदिन दूषित होती जा रही है।पाश्चात्य संस्कृति की देखादेखी में समलैंगिक सम्बन्धों व विवाह की वैधानिकता प्रदान करना साथ ही विजातीय विवाह को प्रोत्साहित करने का प्रावधान किसी भी दृष्टि से भारतीय संस्कृति के अनुकूल नहीं है।विजातीय संबन्धों में विजीतीय जोड़ों के द्वारा उत्पन्न बच्चों में बुद्धि की तीक्ष्णता बढ़ने और सजातीय में जन्में बच्चों की बुद्धि में इतनी अधिक चातुर्यता व तीक्ष्णता न होने का कारण देकर इस प्रकार की व्यवस्था को अपनाने का प्रयास हमारी प्राचीन परम्परा व संस्कृति को क्षति पहुंचाना ही माना जा सकता है।

समय रहते इस प्रकार की दैहिक स्वच्छन्दता से समाज यदि सचेत नहीं होगा तो भविष्य किस स्तर का होगा।दुष्परिणाम क्या-क्या होंगे सोचा जा सकता है।

 

*शशांक मिश्र भारती

परिचय - शशांक मिश्र भारती नामः-शशांक मिश्र ‘भारती’ आत्मजः-स्व.श्री रामाधार मिश्र आत्मजाः-श्रीमती राजेश्वरी देवी जन्मः-26 जुलाई 1973 शाहजहाँपुर उ0प्र0 मातृभाषा:- हिन्दी बोली:- कन्नौजी शिक्षाः-एम0ए0 (हिन्दी, संस्कृत व भूगोल)/विद्यावाचस्पति-द्वय, विद्यासागर, बी0एड0, सी0आई0जी0 लेखनः-जून 1991 से लगभग सभी विधाओं में प्रथम प्रकाशित रचना:- बदलाव, कविता अक्टूबर 91 समाजप्रवाह मा0 मुंबई तितली - बालगीत, नवम्बर 1991, बालदर्शन मासिक कानपुर उ0प्र0 -प्रकाशित पुस्तकें हम बच्चे (बाल गीत संग्रह 2001) पर्यावरण की कविताएं ( 2004) बिना बिचारे का फल (2006/2018) क्यो बोलते है बच्चे झूठ (निबध-2008/18)मुखिया का चुनाव (बालकथा संग्रह-2010/2018) आओ मिलकर गाएं(बाल गीत संग्रह 20011) दैनिक प्रार्थना(2013)माध्यमिक शिक्षा और मैं (निबन्ध2015/2018) स्मारिका सत्यप्रेमी पर 2018 स्कूल का दादा 2018 अनुवाद कन्नड़ गुजराती मराठी संताली व उड़िया में अन्यभाषाओं में पुस्तकें मुखिया का चुनाव बालकथा संग्रह 2018 उड़िया अनुवादक डा0 जे.के.सारंगी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन -जून 1991 से हास्य अटैक, रूप की शोभा, बालदर्शन, जगमग दीपज्योति, देवपुत्र, विवरण, नालन्दा दर्पण, राष्ट्रधर्म, बाल साहित्य समीक्षा, विश्व ज्योति, ज्योति मधुरिमा, पंजाब सौरभ, अणुव्रत, बच्चों का देश, विद्यामेघ, बालहंस, हमसब साथ-साथ, जर्जर कश्ती, अमर उजाला, दैनिक जनविश्वास, इतवारी पत्रिका, बच्चे और आप, उत्तर उजाला, हिन्दू दैनिक, दैनिक सबेरा, दै. नवज्योति, लोक समाज, हिन्दुस्तान, स्वतंत्र भारत, दैनिक जागरण, बालप्रहरी, सरस्वती सुमन, बाल वाटिका, दैनिक स्वतंत्र वार्ता, दैनिक प्रातः कमल, दैं. सन्मार्ग, रांची एक्सप्रेस, दैनिक ट्रिब्यून, दै.दण्डकारण्य, दै. पायलट, समाचार जगत, बालसेतु, डेली हिन्दी मिलाप उत्तर हिन्दू राष्ट्रवादी दै., गोलकोण्डा दर्पण, दै. पब्लिक दिलासा, जयतु हिन्दू विश्व, नई दुनिया, कश्मीर टाइम्स, शुभ तारिका, मड़ई, शैलसूत्रं देशबन्धु, राजभाषा विस्तारिका, दै नेशनल दुनिया दै.समाज्ञा कोलकाता सहित देश भर की दो सौ से अधिक दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, द्वैमासिक, त्रैमासिक, अर्द्धवार्षिक व वार्षिक पत्र-पत्रिकाओं में अनवरत। अन्तर जाल परः- 12 अगस्त 2010 से रचनाकार, साहित्य शिल्पी, सृजनगाथा, कविता कोश, हिन्दी हाइकु, स्वर्गविभा, काश इण्डिया ,मधेपुरा टुडे, जय विजय, नये रचनाकार, काव्यसंकलन ब्लाग, प्रतिलिपि साहित्यसुधा मातृभाषाडाटकाम हिन्दीभाषा डाटकाम,युवाप्रवर्तक,सेतु द्विभाषिक आदि में दिसम्बर 2018 तक 1000 से अधिक । ब्लागसंचालन:-हिन्दी मन्दिरएसपीएन.ब्लागपाट.इन परिचय उपलब्ध:-अविरामसाहित्यिकी, न्यूज मैन ट्रस्ट आफ इण्डिया, हिन्दी समय मा. बर्धा, हिन्दुस्तानी मीडियाडाटकाम आदि। संपादन-प्रताप शोभा त्रैमा. (बाल साहित्यांक) 97, प्रेरणा एक (काव्य संकलन 2000), रामेश्वर रश्मि (विद्यालय पत्रिका 2003-05-09), अमृतकलश (राष्ट्रीय स्तर का कविता संचयन-2007), देवसुधा (प्रदेशस्तरीय कविता संचयन 2009),देवसुधा (अ भा कविता संचयन 2010), देवसुधा-प्रथम प्रकाशित कविता पर-2011,देवसुधा (अभा लघुकथा संचयन 2012), देवसुधा (पर्यावरण के काव्य साहित्य पर-2013) देवसुधा पंचम पर्यावरणविषयक कविताओं पर 2014 देवसुधा षष्ठ कवि की प्रतिनिधि काव्यरचना पर 2014 देवसुधा सात संपादकीय चिंतन पर 2018 सह संपादन लकड़ी की काठी-दो बालकविताओं पर 2018 आजीवन.सदस्य/सम्बद्धः-नवोदित साहित्यकार परिषद लखनऊ-1996 से -हमसब साथ-साथ कला परिवार दिल्ली-2001 से -कला संगम अकादमी प्रतापगढ़-2004 से -दिव्य युग मिशन इन्दौर-2006 से -नेशनल बुक क्लव दिल्ली-2006 से -विश्व विजय साहित्य प्रकाशन दिल्ली-2006 से -मित्र लोक लाइब्रेरी देहरादून-15-09-2008 से -लल्लू जगधर पत्रिका लखनऊ-मई, 2008 से -शब्द सामयिकी, भीलबाड़ा राजस्थान- -बाल प्रहरी अल्मोड़ा -21 जून 2010 सेव वर्जिन साहित्य पीठ नई दिल्ली 2018 से संस्थापकः-प्रेरणा साहित्य प्रकाशन-पुवायां शाहजहांपुर जून-1999 सहसंस्थापक:-अभिज्ञान साहित्यिक संस्था बड़ागांव, शाहजहांपुर 10 जून 1991 प्रसारणः- फीबा, वाटिकन, सत्यस्वर, जापान रेडियो, आकाशवाणी पटियाला सहयोगी प्रकाशन- रंग-तरंग(काव्य संकलन-1992), काव्यकलश 1993, नयेतेवर 1993 शहीदों की नगरी के काव्य सुमन-1997, प्रेरणा दो 2001 प्यारे न्यारे गीत-2002, न्यारे गीत हमारे 2003, मेरा देश ऐसा हो-2003, सदाकांक्षाकवितांक-2004, सदाकांक्षा लघुकथांक 2005, प्रतिनिधि लघुकथायें-2006, काव्य मंदाकिनी-2007, दूर गगन तक-2008, काव्यबिम्ब-2008, ये आग कब बुझेगी-2009, जन-जन के लिए शिक्षा-2009, काव्यांजलि 2012 ,आमजन की बेदना-2010, लघुकथा संसार-2011, प्रेरणा दशक 2011,आईनाबोलउठा-2012,वन्देमातरम्-2013, सुधियों के पल-2013, एक हृदय हो भारत जननी-2015,काव्यसम्राटकाव्य एवं लघुकथासंग्रह 2018, लकड़ी की काठी एक बालकाव्य संग्रह 2018 लघुकथा मंजूषा दो 2018 लकड़ी की काठी दो 2018 मिली भगत हास्य व्यंग्य संग्रह 2019 जीवन की प्रथम लघुकथा 2019 आदि शताधिक संकलनों, शोध, शिक्षा, परिचय व सन्दर्भ ग्रन्थों में। परिशिष्ट/विशेषांकः-शुभतारिका मा0 अम्बाला-अप्रैल-2010 सम्मान-पुरस्कारः-स्काउट प्रभा बरेली, नागरी लिपि परिषद दिल्ली, युगनिर्माण विद्यापरिषद मथुरा, अ.भा. सा. अभि. न. समिति मथुरा, ए.बी.आई. अमेरिका, परिक्रमा पर्यावरण शिक्षा संस्थान जबलपुर, बालकन जी वारी इण्टरनेशनल दिल्ली, जैमिनी अकादमी पानीपत, विन्ध्यवासिनी जन कल्याण ट्रस्ट दिल्ली, वैदिकक्रांति परिषद देहरादून, हमसब साथ-साथ दिल्ली, अ.भा. साहित्य संगम उदयपुर, बालप्रहरी अल्मोड़ा, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद, कला संगम अकादमी प्रतापगढ़, अ. भा.राष्ट्रभाषा विकास संगठन गाजियाबाद, अखिल भारतीय नारी प्रगतिशील मंच दिल्ली, भारतीय वाङ्मय पीठ कोलकाता, विक्रमशिला विद्यापीठ भागलपुर, आई.एन. ए. कोलकाता हिन्दी भाषा सम्मेलन पटियाला, नवप्रभात जनसेवा संस्थान फैजाबाद, जयविजय मासिक, काव्यरंगोली साहित्यिक पत्रिका लखीमपुर राष्ट्रीय कवि चौपाल एवं ई पत्रिका स्टार हिन्दी ब्लाग आदि शताधिक संस्था-संगठनों से। सहभागिता-राष्ट्रीय- अन्तर्राष्टीय स्तर की एक दर्जन से अधिक संगोष्ठियों सम्मेलनों-जयपुर, दिल्ली, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, देहरादून, अल्मोड़ा, भीमताल, झांसी, पिथौरागढ़, भागलपुर, मसूरी, ग्वालियर, उधमसिंह नगर, पटियाला अयोध्या आदि में। विशेष - नागरी लिपि परिषद, राजघाट दिल्ली द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर वरिष्ठ वर्ग निबन्ध प्रतियोगिता में तृतीय पुरस्कार-1996 -जैमिनी अकादमी पानीपत हरियाणा द्वारा आयोजित तीसरी अ.भा. हाइकु प्रतियोगिता 2003 में प्रथम स्थान -हम सब साथ-साथ नई दिल्ली द्वारा युवा लघुकथा प्रतियोगिता 2008 में सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति सम्मान। -सामाजिक आक्रोश पा. सहारनपुर द्वारा अ.भा. लघुकथा प्रति. 2009 में सराहनीय पुरस्कार - प्रेरणा-अंशु द्वारा अ.भा. लघुकथा प्रति. 2011 में सांत्वना पुरस्कार --सामाजिक आक्रोश पाक्षिक सहारनपुर द्वारा अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता-2012 में सराहनीय पुरस्कार -- जैमिनी अकादमी पानीपत हरियाणा द्वारा आयोजित 16 वीं अ.भा. हाइकु प्रतियोगिता 2012 में सांत्वना पुरस्कार ,जैमिनी अकादमी पानीपत हरियाणा द्वारा आयोजित 24 वीं अ.भा. लघुकथा प्रतियोगिता 2018 में सांत्वना पुरस्कार सम्प्रति -प्रवक्ता संस्कृत:-राजकीय इण्टर कालेज टनकपुर चम्पावत उत्तराखण्ड स्थायी पताः- हिन्दी सदन बड़ागांव, शाहजहांपुर- 242401 उ0प्र0 दूरवाणी:- 9410985048, 9634624150 ईमेल [email protected]/ [email protected]