सुनहरी भोर बागों में
सुनहरी भोर बागों में, बिछाती ओस की बूँदें!
नयन का नूर होती हैं, नवेली ओस की बूँदें!
चपल भँवरों की कलियों से, चुहल पर मुग्ध सी होतीं
मिला सुर गुनगुनाती हैं, सलोनी ओस की बूँदें!
चितेरा कौन है? जो रात, में जाजम बिछा जाता
न जाने रैन कब बुनती, अकेली ओस की बूँदें!
करिश्मा है खुदा का या, कि ऋतु रानी का ये जादू
घुमाकर जो छड़ी कोई, गिराती ओस की बूँदें!
नवल सूरज की किरणों में, छिपी होती हैं ये शायद
जो पुरवाई पवन लाती, सुधा सी ओस की बूँदें!
टहलने चल पड़ें साथी, निहारें रूप प्रातः का
न जाने कब बिखर जाएँ, फरेबी ओस की बूँदें!
– कल्पना रामानी, नवी मुम्बई