ऐसी चुनौती हार क्या?
गाँव उजड़ वीरान हो गये
बूढ़े,बच्चे परेशान हो गये
नदी,जलाशय सूख गए
मानो आकाश में समा गए।।
जल की रानी तड़फ रही
मानो जीने को तरस रही
हृदयविदारक है घटना
भूख से जीवन तड़प रही।।
नदिया सम्मुख सूख रही
जल से जन-जीवन कूद रही
हे परमपिता! हो रहा अकाज
पुकार सुन मैं निषादराज!
नाव क्या, पतवार क्या
सूखा पड़ा, मझधार क्या
संकट समय, आहार क्या
ऐसी चुनौती हार क्या?
पतवार मेरी उलट गई
मझधार में नौका पलट गई
किनारा दूँ असहाय वर्ग को
विकराल चुनौती कहते इसको।।
— ज़हीर अली सिद्दीक़ी