कविता

किस कदर करवां का भी जाना हुआ

किस कदर चाँद तारों का आना हुआ,
किस कदर कारवाँ का भी जाना हुआ,
हम जमाने की कलियाँ , खिलाते गये,
हर जमाने मे कोई मुक्कदर बना
किस कदर कारवाँ का भी जाना हुआ.!
ऐसी भोली सी सूरत कहाँ छुप गयी
सुनने वालों का दिल भी थम सी गयी
हर नई एक कलियाँ संयोजे हुए
हर नया एक भौरें गुंजाते हुए,
मर गये मिट गये हम वतन के लिए
अपनी आजादी को नमन करते रहे,
धन्य – धन्य हे भारत माता तुम्हे
तु एक दिन की मृत्यु को टाली रखी!
किस कदर चाँद तारों का आना हुआ
किस कदर कारवाँ का भी जाना हुआ!
। विजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी (स्नातकोत्तर छात्रा) पता -चेनारी रोहतास सासाराम बिहार।