. ‘जीवन में साहित्य का योगदान’– ‘हिंदी हैं हम’
जीवन जन्म से लेकर अंतिम सांस तक चलता ही रहता है, लेकिन यह जीवन कैसा है, सम्मानित है, सुखी है शिष्ट है, श्रेष्ठ है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि जीवन भर आपने क्या सीखा क्या शिक्षा पायी, कैसा आचरण रखा और आपका जन जन से कैसा संपर्क रहा, हर व्यक्ति का जीवन एक सा नहीं रहता, शिक्षा, भाषा, धर्म अदि अलग अलग हो सकते हैं, लेकिन जैसे हर मनुष्य की बुनियादी ज़रुरत रोटी कपडा मकान और सुरक्षा है, उसी प्रकार से मानव को मनुष्य कहलाने के लिए अगर सबसे ज़रूरी कुछ है तो वह है ‘सभ्यता’.
और इसी सभ्यता के बल पर मनुष्य जीवन में आदर पता है और आगे बढ़ता है. सभ्यता के क्षेत्र में अगर प्रमुख योगदान की बात की जाये तो साहित्य का स्थान इस में सर्वोपरि है, इसीलिए कहा गया है, ‘साहित्य समाज का दर्पण है’,
साहित्य लेखन से जुड़ा है और लेखन विचारों से, साहित्य भी इन्ही विचारो के शाब्दिक रूप से पनपता है और बहुत ही शीघ्र पूरे समाज में फैल जाता है.
इस धरा पर जाने कितने ही विद्वान साहित्यकार हुए है, जिनके विचार लेखनी के माध्यम से जन जन तक पहुंचे हैं, और समाज को सभ्यता का पाठ पढ़ाने में, इनका अद्वितीय योगदान रहा है, केवल लिखना ही साहित्य नहीं हैं, साहित्य तो सही मायने में वह लेखन है जो समाज के हित को ध्यान में रख कर लिखा जाता है, अश्लील भाव से या निर्लज्ज भाषा में लिखना कभी साहित्य नहीं कहलायेगा.
साहित्य का सबसे बड़ा योगदान है की यह लेखक को अमर बना देता है,
न जाने आज कितने ऐसे महान साहित्यकार है जो आज हमारे बीच इस दुनिया में नहीं हैं पर अपनी लेखनी के माध्यम से जो साहित्य का योगदान किया है
उस से वह अमर हो गए हैं, जैसे मुंशी प्रेम चंद, कवि मैथिलि शरण गुप्त जी, न जाने ऐसे कितने ही नाम ज़हन में आ रहे हैं,
जिन्होंने साहित्य के माध्यम से अपने विचार लिखे, और सामाजिक ज्ञान और उत्थान के लिए अमूल्य योगदान दिया है,
जिनमे लेखक, उपन्यासकार, कवि, समाज सुधारक और विभिन्न विषयों के विद्वान् शामिल हैं,
पर सब का वर्णन करना यहाँ संभव नहीं है, पर इतना अवश्य कहूंगा की समाज को सही शिक्षा और मार्ग दर्शन देने में वह सदियां बीत जाने के बात भी याद किये जाते हैं और उन सब का नाम बड़े आदरभाव से लिया जाता है,
सही मायने में साहित्य तो वही है जिसमे अदब हो, ज्ञान हो, मनोरंजन हो,
और जन हित की भावना से ही लिखा जाये,
लेकिन कुछ रचनाकार केवल वाह वाही लूटने के लिए या केवल धन के लालच में कुछ भी लिख कर समाज को दूषित करने का प्रयास करते हैं,
यहाँ तक की वह अदब और शालीनता की सीमा भी लाँघ जाते हैं,
ऐसे लेखन को कभी साहित्य जगत में स्थान नहीं मिलता और न ही यह लोग किसी सम्मान के पात्र होते हैं.
इसमें कोई दो राय नहीं की साहित्य लिखने और पढ़ने वालों का चरित्र एक आम आदमी के मुक़ाबले में बेहतर होता है,
उनमे सोचने समझने और समाज कल्याण की भावना भी अधिक होती है.
जो बात कोई मौखिक रूप से नहीं कह सकता वह लिखित रूप में बहुत ही विस्तार से कह जाता है, या कहे कि संजो जाता है, और यह सदियों तक एक धरोहर के रूप में सुरक्षित हो जाती हैं, आज भी ऐसी कई पुस्तके,
रचनाएँ, लेख अदि बड़े ही ध्यान से पढ़े जाते हैं और जिनसे लोग मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं,
जो वर्षों पूर्व लिखी गयी थी, पर आज भी उनका महत्त्व कम नहीं हुआ है.
आज विज्ञान के बल पर तकनीकी युग है,
इसीलिए पुस्तकों में जो पहले ज्ञान सुरक्षित होता था वह आज आधुनिक युग में उपलब्ध साधनो में
जैसे कंप्यूटर फाइल, सी डी, पैन ड्राइव, आदि में भी सहजता से सुरक्षित किया जा रहा है,
पर पुस्तक, उपन्यास, पत्रिकाओं या अन्य मुद्रण तकनीक के सहारे सुरक्षित ज्ञान का अपना ही महत्त्व है, पुस्तक, पत्रिका पढ़ने वाला पढ़ते
समय अपने ध्यान से विचलित नहीं होता, परन्तु कंप्यूटर आदि में कुछ भी पढ़ने पर, खासकर साहित्य रचना,
उतना आनंद नहीं देती जितना पढ़ने में मज़ा आता है.
अंत में मेरा तो सभी साहित्य प्रेमीयों से यही अनुरोध है कि उच्च कोटि का साहित्य पढ़े और सभी लेखकों,
रचनाकारों को भी यही सलाह दूंगा कि लेखन कार्य को माँ सरस्वती कि पूजा मान कर ही करें,
बहुत से लोग ज्ञान होते हुए भी अपनी बात दूसरो के सामने नहीं रख पाते,
पर जिन पर माँ सरस्वती कि कृपा होती है, वह सफल लेखक, कवि बन जाते है.
जब भी लिखें अच्छा लिखें, जबभी पढ़े अच्छा पढ़े, साहित्य में अपना बहुमूल्य योगदान देते रहे,
अपनी कविता रचनाएँ, जो इसी विषय पर लिखी है, आपकी नज़र कर रहा हूँ,—
लेखक के दिल के भाव तो,
साहित्य कि भावनाओं में बहते हैं
शब्द भी इन भावों से पिघल कर,
लेखनी के वश में रहते है,
साहित्य में अगर चमकना है,
साहित्य की ‘किरण’ बन कर
तो पहले माँ सरस्वती का गुणगान करें —
लेखनी तो सरस्वती है,
इसका न अपमान करें,
सत्य लिखें सौम्य लिखे,
अश्लीलता से दूर रहें,
सच चाहे कड़वा भी हो,
लेखक को स्वीकार हो
झूठ चाहे मधुर हो,
विष की तरह धिक्कार हो,
जो लिखा है आज,
वो सदियों न मिट पायेगा,
जैसा लेखन पढ़ेगा ,
समाज वैसा ही बन जायेगा,
कलम की ताक़त जहाँ में,
तलवार से भी तेज़ है,
माया की खातिर झूठ लिखते,
बस इसी का खेद है,
सच्चे मन से जो करता है ‘कविता’ सृजन
वही साहित्य में चमकता है,
बन कर दिनकर की ‘किरण ‘
——जय प्रकाश भाटिया
मेरी मातृ भाषा हिंदी
भारत माता के भाल पर जैसे सुशोभित है बिंदी
साहित्य के सौन्दर्य में वैसे हमारी भाषा हिंदी,
सरल सहज, स्वर व्यंजन मात्रा की परिभाषा
जैसे बोली जाये वैसे ही लिखी जाये यह भाषा
इस विशाल देश में हर प्रांत की अपनी एक भाषा
पर संस्कृत से जननी सबमे अग्रणीय हिंदी भाषा
पूरे देश में जानी जाती है हिंदी, एक संपर्क भाषा
हिंदी का ज्ञान रखने पर कभी होती नहीं निराशा
हिंदी भाषा में संजोया गया है साहित्य का खज़ाना,
जिसे पढ़ कर सभ्य रूप में में उपजा है यह ज़माना
अंग्रेज़ी भी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है, अवश्य सीख लीजिये,
पर हिंदी भाषा सर्वोच्य है, यह अवश्य जान लीजिये,
हिंदी बोले तो शुद्ध बोले,मिलावटी शब्दों से रहें दूर,
अपने ज्ञान का परिचय दे, न समझे खुद को मज़बूर,
देवनागरी हिंदी की लिपि है, इस से है हमारी पहचान
हिंदी भाषा का हम सब ने मिलकर करना है सम्मान .
सारे विश्व ने हमारी हिंदी भाषा को सही पहचाना है,
हिंदी धर्म ग्रंथों में छिपा अथाह ज्ञान का खज़ाना है,
हिंदी भाषा मार्गदर्शक है, उन्नति का है स्रोत्र विशाल,
हिंदी का अध्धयन करके, हो जाओ ज्ञानी बेमिसाल
—जय प्रकाश भाटिया
हमारी मातृ भाषा
हिंदी हमारी मातृ भाषा है, और यह है राष्ट्र की भाषा,
हिंदी भाषा के ग्रंथो में निहित सब धर्मो की परिभाषा,
तुलसी,सूर, कबीर निराला, महा कवियों की है वाणी,
हिंदी भाषा पढ़ ज्ञानी बन गए, कितने अनपढ़ अज्ञानी,
हिंदी भाषा है मान हमारा, हिंदी भाषा से शान हमारी,
हिंदी का गुणगान जहाँ पर, वहां महिमा ज्ञान की सारी,
वेद ग्रंथो में अथाह ज्ञान है,निहित इनमें जीवन का सार,
श्रीकृष्ण की गीता ही दर्शाती, सब जीवन कर्मो का आधार,
मेरे भारत में कई प्रान्त है, और यहाँ कई भाषाए बोली,
कहीं पंजाबी कहीं बंगाली, कहीं और तमिल जाये बोली,
पर सबका स्रोत्र एक ही संस्कृत, सब में एक समानता,
हिंदी इन सबकी अग्रणी भाषा, देश को एक सूत्र में बांधा,
आओ हम मिल हिंदी बोलें, हिंदी में अपना ज्ञान बढ़ाएं,
वेदो का कर अध्य्यन, विश्व में अपने देश का नाम कमाएं .
—- जय प्रकाश भाटिया
हमारा गौरव –हिंदी भाषा
भाषा के हैं कई रूप, कुछ है जाने, कुछ अनजान
लेकिन अपने में हर भाषा, होती है कितनी महान,
भाषा से ही मिलती है, सबको शिक्षा, उच्चतम ज्ञान
लेकिन मातृभाषा हिंदी का,सबसे ऊंचा प्रथम स्थान
संस्कृत जिसका है आधार, सुलझी सरल सबसे महान
हिंदी साहित्य ने किया है, विश्व में जन जन का कल्याण
वेदो धर्म ग्रंथो की धरोहर है, हमारी यह हिंदी भाषा
सरल सीखने में, लिखने पड़ने से जगाती नई आशा
हिंदी जानकार को कभी नहीं, आती बोलने में निराशा
इसीलिए तो हम गर्व से कहते हैं, हिंदी है हमारी भाषा
— जय प्रकाश भाटिया