कविता

मेरे घर का कम्पाउंड

सुबह हर घर के दरीचों में चहकती चिड़िया
दिन के आग़ाज़ का पैग़ाम है देती चिड़िया।

फ़सल पक जाने की उम्मीद पे जीती है सदा..
सब्ज़ खेतों की मुँडेरों पे फुदकती चिड़िया।

अब मकानों में झरोखे नही है, शीशे है..
जिनसे टकरा के ज़मीं पर है तड़पती चिड़िया।

— पुष्पा त्रिपाठी ‘पुष्प’

पुष्पा त्रिपाठी ‘पुष्प’

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