खुशी का ज्वालामुखी
दक्षिण कोरिया की रहने वाली चोई सून बहुत खुश थी. 77 साल की एक बुजुर्ग चोई सून का मॉडलिंग की शुरुआत करना कोई आसान काम तो नहीं था न! पर जब उसने ठान ही लिया था, कि मॉडलिंग करनी है, तो फिर उसकी सफलता को भला कौन रोक सकता था? अब जब उसे कई कंपनियों की तरफ से ऑफर मिल रहे हैं, तो उसका खुश होना लाजिमी था. फुरसत के कुछ पलों में वह अपने अतीत में झांकने से खुद को नहीं रोक पाती थी.
”मेरा जीवन संघर्षभरा रहा है.” वह खुद से कहती.
”पहले आर्थिक तंगी में पली-बढ़ी, फिर पति ने छोड़ दिया, अब अकेले ही मुझे बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी संभालनी थी.” सोचते-सोचते चोई मायूस हो जाती.
”पिछले कई सालों से मैं हॉस्पिटल में नौकरी करके गुजारा कर रही थी, इसका बड़ा कारण कर्ज था, जो मुझे चुकाना था.” सोच की कोई सीमा नहीं थी.
”मेरे पास आमदनी का कोई और ज़रिया नहीं था, कमाई का बड़ा हिस्सा कर्ज चुकाने में जा रहा था. काम के दौरान मेरे लिए लंच करना भी बहुत मुश्किल हो जाता था. तनाव बढ़ता जा रहा था. ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरे अंदर कोई ज्वालामुखी फूटने वाला हो. मैं थक चुकी थी, इसलिए जीवन को बदलने की ठानी.” सचमुच एक दिन ज्वालामुखी फूट पड़ा.
”एक विज्ञापन देखकर इस उम्र में मॉडल बनने का ख्याल आया, तो मॉडलिंग क्लासेस के लिए आवेदन किया और तैयारी शुरू की.”
”77 साल की उम्र में मॉडलिंग की शुरुआत करने पर ताने तो सुनाई पड़ने ही थे, सो सुने. वक्त कब किसी के कहे रुकता है! वह दौर भी गुजर गया.”
”अब लोगों से तारीफ सुनकर अच्छा लग रहा है. असल जिंदगी से लेकर सोशल मीडिया तक लोग मुझे पसंद कर रहे हैं. अब कई कंपनियों की तरफ से ऑफर मिल रहे हैं.” उसकी खुशी का पारावार नहीं था.
”एक बात और, जब हॉस्पिटल में थीं तो मुझे सफेद बाल छिपाने के लिए डाई करना पड़ता था, क्योंकि मरीज नहीं चाहते थे कि कोई बुजुर्ग उनकी देखभाल करे. अब मॉडलिंग के लिए बाल भी डाई नहीं करना पड़ता.” एक और मुसीबत से छुटकारा मिला.
”ठान ले इंसान तो क्या नहीं हो सकता!”
दुःख का ज्वालामुखी खुशी का ज्वालामुखी बन गया था!
सच ही तो है!
”ठान ले इंसान तो क्या नहीं हो सकता!”
दक्षिण कोरिया की रहने वाली चोई सून के साहस से दुःख का ज्वालामुखी खुशी के ज्वालामुखी के रूप में परिवर्तित हो गया था.
यह प्रसंग हमें रविंदर सूदन भाई ने भेजा था, हम उनके बहुत-बहुत आभारी हैं.