नफ़रत।
अपनी मम्मी को आवाज़ लगाता ध्रुव चुपचाप वहीं खड़ा हो गया, मम्मी और दादी आपस में झगड़ रहे थे। दादी गुस्से वाले थे मगर उनके गुस्से में स्वार्थ के साथ-साथ फिक्र भी थी, मम्मी को आजाद जीने की चाह थी कि उन्हें कोई रोक टोक न हो। दादी को कहीं फिजूलखर्ची और घूमने जाना पसंद नहीं था ..बस इसी बात को लेकर अक्सर उन दोनों में झगड़ा हो जाता, न दादी मम्मी को समझती कि वो भी कुछ पल अपनी मर्जी से गुजारना चाहती है न ही मम्मी समझती कि दादी इतनी बुरी नहीं हैं जितना वो समझती थी। ध्रुव दस साल का था पर वो सब समझता था और कभी कभी मम्मी से झगड़ा करता आपको हर वक्त यही काम है आप ही क्यों नहीं चुपचाप घर बैठती… मम्मी भी झट से कहती जब तेरी पत्नी पे इतनी पाबन्दी लगाऊंगी तो सब समझ आ जाएगा अभी छोटे हो न इसलिए ये सब कह रहे हो। ध्रुव कहता नहीं मम्मी मैं शादी ही नहीं करूंगा शादी के बाद पापा भी अपनी मम्मी(दादी) से दूर हो गए हैं और वो घर पे कम रहते हैं शायद इसकी वजह आपका व्यवहार हो आप पापा को रोज़ दादी की कही बातें सुनाकर नफरत से जो भर देती हो, मुझे भी रोज़ का ये झगड़ा पसंद नहीं मम्मी। अवनी सोच रही थी कि मुझे क्या हो गया है मैं ही जल्दी गुस्से से भर जाती हूं और सासु मां से गल्त व्यवहार करती हूं मेरे पति तो पहले ही कह कहकर थक गए थे कि वो बड़े हैं प्यार से बात किया करो,बात-बात पे मत झगड़ा किया करो शायद इसी वजह से वो घर देरी से आकर सुबह जल्दी चले जाते हैं और ध्रुव…वो तो आज अपने अंदर भरी नफ़रत जिसने मासूम दिल का प्यार अभी से खत्म कर दिया था। नहीं नहीं…. अवनी ने कुछ पल इस बात कैसे सोचा तो पाया सासु मां ने इतनी भी पाबंदी नहीं लगाई है मैं कभी अपने मन की भी तो करती हूं शायद मैं ही हर बात में मनमानी के चलते कुछ ज्यादा ही स्वार्थी हो गई थी। मैंने ध्रुव के मन में भी नफ़रत भर दी अब मुझे सब सही करना होगा ये सोचकर वो सासु मां के पास जाकर बैठ गई और प्यार से बातें करने लगी तो देखा वो भी बेटा कहकर उससे मन की बात सहज ही कह रहे थे कि तुम गुस्सा मत किया करो मेरा स्वभाव ऐसा हो गया है कि जल्दी ही धैर्य खो देती हूं तुम समझदार हो फिर भी सब भुला कर मुझ से प्यार से बात कर रही हो और मेरे पास बैठी हो कुछ पल के लिए भगवान तुम्हें सदा खुश रखे…ध्रुव दूर से ये सब देख रहा था और नफ़रत पर प्यारकी इस जीत को भी,जिसने उसके मन की नफ़रत को भी भस्म कर दिया था और हर तरफ़ प्यार ही प्यार का माहौल लग रहा था।
— कामनी गुप्ता