हिमा दास
वह दौड़ रही है जीवन के स्याह पहलुओं से आगे,
वह दौड़ रही है जंजीरों को तोड़ मनुज ने जो बांधे।
ना रोक सकेगा कोई अब ये तो सरिता बन बैठी है,
बाँध तोड़ जब नदी बही तो टिका नहीं कोई आगे।।
मेहनत की भट्ठी में जलकर हिमा बनी है जलधारा,
जग रोक नहीं पायेगा इसको चढ़ा हुवा इसका पारा।
हिंदुस्तान की मिट्टी से निकली यह मेहनतकश बिट्टी,
सम्पुर्ण जगत में चमक रही बनकर सुनहरा एक तारा।।
उम्मीदों से बढ़ आगे जग को चौंकाया है तुमने,
बन के धुरंधर जो आये सबको हराया है तुमने।
दौड़ पड़ी जब बनके हवा ना पास ठहर पाया कोई
रह आगे जगवालों से खुद नाम बनाया है तुमने।।
।।प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदीकला, सुलतानपुर
7978869045