मुक्तक/दोहा

मुक्तक

बाहर की दुनिया के भय से,
खुद पर खूब लगाए पहरे ।
भीतर घोर उदासी छाई,
मुस्कानों से सजाएं चेहरे ।
शब्दों को जो तोलते हरदम,
वो खामोशी क्या समझेंगें ।
अपनों से अनजान वो यारों,
हम तो खैर पराए ठहरे ।

बहती नदियाँ सिमट रही है,
कब तक खैर मनाए लहरें ।
भूले से ना भूल सकेंगे,
दिल पर घाव लगाए गहरे ।
जहरीले बाणों सी बातें,
दिल के टुकड़े कर देती है ।
दीवारें सुनती हैं चीखें,
लोग भले हो जाए बहरे ।

नीतू शर्मा 'मधुजा'

नाम-नीतू शर्मा पिता-श्यामसुन्दर शर्मा जन्म दिनांक- 02-07-1992 शिक्षा-एम ए संस्कृत, बी एड. स्थान-जैतारण (पाली) राजस्थान संपर्क- [email protected]