ईश्वर की स्तुति एवं उससे हमारी प्रार्थना
ओ३म्
ईश्वर ने यह संसार अपनी शाश्वत् प्रजा जीवों के सुख के लिये बनाया है। हमारा कर्तव्य है कि हम उसके उपकारों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए उसकी स्तुति व प्रार्थना करें। ऋषि दयानन्द ने हमें ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना करना सिखाया है। मनुष्य के लिये ईश्वर की उपासना करना प्रथम अनिवार्य कर्तव्य है। ऋषि के कुछ स्तुति व प्रार्थना के वचनों को ही हम यहां प्रस्तुत कर रहें।
ईश्वर की स्तुति एवं प्रार्थना
आज प्रभात वेला में स्वप्रकाशस्वरूप परमैश्वर्य के दाता और परमैश्वर्ययुक्त, प्राण, उदान के समान प्रिय और सर्वशक्तिमान, वूर्य, चन्द्र को जिसने उत्पन्न किया है, उस परमात्मा की हम स्तुति करते हैं। और भजनीय, सेवनीय, ऐश्वर्ययुक्त, पुष्टिकर्ता, अपने उपासक, वेद और ब्राह्माण्ड के पालन करनेहारे, अर्न्तयायमी, प्रेरक और पापियों को रुलाने और सर्वरोगनाशक, जगदीश्वर की हम स्तुति, प्रार्थना करते हैं।
पांच घड़ी रात्रि रहे जयशील, ऐश्वर्य के दाता, तेजस्वी, अन्तरिक्ष के सूर्य की उत्पत्ति करने और सूर्यादि लोकों को विशेष करके धारण करनेहारा, सब ओर से धारणकर्ता, जिस किसी का भी जाननेहारा, दुष्टों को दण्डदाता और सबका प्रकाशक है, जिस भजनीयस्वरूप का इस प्रकार से मैं सेवन करता हूं और उसी प्रकार भगवान् परमेश्वर सबको उपदेश करता है कि तुम जो ईश्वर सूर्यादि जगत् का बनाने और धारण करनेहारा है, उस ईश्वर की उपासना किया करो और मेरी आज्ञा में चला करो, जिससे तुम लोग सदा उन्नतिशील रहो, इसलिए हम लोग उसकी स्तुति करते हैं।
हे भजनीयस्वरूप, सबके उत्पादक, सत्याचार में प्रेरक ऐश्वर्यप्रद, सत्यधन के देनेहारे, सत्याचरण करनेहारों को ऐश्वर्यदाता आप परमेश्वर! हमको इस प्रज्ञा को दीजिए और उसके दान से हमारी रक्षा कीजिए। आप गाय आदि और घोड़े आदि उत्तम पशुओं के योग से राज्यश्री को हमारे लिए प्रकट कीजिए। हे भग! आपकी कृपा से हम लोग उत्तम मनुष्यों से युक्त और बहुत वीर, साहसी, पराक्रमी मनुष्य वाले अच्छे प्रकार होंवें।
हे भगवन्! आपकी कृपा और अपने पुरुषार्थ से हम लोग इसी समय प्रकर्षता=उत्तमता की प्राप्ति में और इन दिनों के मध्य में ऐश्वर्ययुक्त और शक्तिमान् होंवे। हे परमपूजित असंख्य-धन देनेहारे! सूर्यलोक के उदय की वेला मे हम लोग पूर्ण विद्वान, धार्मिक, आप्त लोगों की अच्छी, उत्तम प्रज्ञा और सुमति में सदा प्रवृत्त रहें।
हे सकलैश्वर्यसम्पन्न जगदीश्वर! आपकी सब सज्जन निश्चय करके प्रशंसा करते हैं, सो आप हे ऐश्वर्यप्रद! इस संसार और हमारे गृहाश्रम में अग्रगामी हों और हमें आगे-आगे सत्य कर्मों में बढ़ानेहारे हूजिए। हे जगदीश्वर! सम्पूर्ण ऐश्वर्ययुक्त और समस्त ऐश्वर्य के दाता होने से आप ही हमारे पूजनीय देव हूजिए। उसी हेतु से हम विद्वान लोग सकलैश्वर्य-सम्पन्न होके सब संसार के उपकार में तन, मन, धन से प्रवृत्त होवें।
सर्वव्यापक, सबका प्रकाशक और सबको आनन्द देनेवाला परमेश्वर मनोवांछित सुख और पूर्णानन्द की प्राप्ति के लिए हमारा कल्याण करे तथा हम पर सब ओर से सुख की सर्वदा वृष्टि करे।
ईश्वर सर्वव्यापक होने से सभी दिशाओं में विद्यमान है। वह ज्ञानस्वरूप और जगत् का स्वामी है। वह परम ऐश्वर्ययुक्त है और कीट-पतंग, वृश्चिक आदि से हमारी रक्षा करता है। ईश्वर सबसे उत्तम है और हमारा राजा है। वह बड़े-बडे़ अजगर, सर्पादि विषधर प्राणियों से हमारी रक्षा करनेवाला है। मेरा प्यारा ईश्वर अपने शान्ति व आनन्द आदि गुणों से हमें सुखी करनेवाला है। वह अजन्मा और सब प्राणियों की अच्छी प्रकार से रक्षा करता है। ईश्वर वृक्ष व वनस्पतियों से हमारी रक्षा करता है और हमारे शरीरों को पुष्ट करता तथा निरोग रखता है। हमारा ईश्वर वाणी, वेदशास्त्र और आकाश आदि अनेकानेक बड़ी-बड़ी शक्तियों का स्वामी एवं सबका अधिष्ठाता है। वह सभी बन्धनों से रहित है। उसका बनाया सूर्य एवं सभी पदार्थ हमारी रक्षा के साधन सिद्ध हो रहे हैं। हम सर्वज्ञ व सर्वगुण सम्पन्न अपने उपास्यदेव ईश्वर को बारम्बार नमन करते हैं। ईश्वर के गुण और ईश्वर के रचे पदार्थ जगत् की रक्षा करनेवाले हैं ओर पापियों को बाणों के समान पीड़ा देनेवाले हैं। उनको हमारा नमस्कार है। जो अज्ञान से हमारा द्वेष करता है और जिससे हम द्वेष करते हैं, उन सब द्वेषरूपी बुराई को उन ईश्वर के बाणरूपी मुख के बीच में दग्ध कर देते हैं।
सबके द्रष्टा, धार्मिक विद्वानों के परमहितकारक, सृष्टि से पूर्व, पश्चात् और मध्य में सत्यस्वरूप से विद्यमान रहनेवाले ओर सर्वजगदुत्पादक ब्रह्म को हम सौ वर्ष तक देखें। उसके सहारे से सौ वर्ष तक जीएं। सौ वर्ष तक उसका ही गुण-गान सुनें। उसी ब्रह्म का सौ वर्ष तक उपदेश करें। उसी की कृपा से सौ वर्ष तक किसी के अधीन न रहें। उसी ईश्वर का आज्ञापालन और कृपा से सौ वर्ष के बाद भी हम लोग देखें, जीवें, सुनें, सुनावें और स्वतन्त्र रहें।
हम सच्चिदानन्दस्वरूप, सकल जगदुत्पादक, प्रकाशकों के प्रकाशक परमात्मा के सर्वश्रेष्ठ पापनाशक तेज का ध्यान करते हैं। वह परमेश्वर हमारी बुद्धि और कर्मों को उत्तम प्रेरणा करें।
हे ईश्वर दयानिधे! आपकी कृपा से हमारे द्वारा जप-उपासना आदि कर्मों से हमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि शीघ्र प्राप्त हो।
ईश्वर सुखस्वरूप ओर हमें संसार के उत्तम सुखों को देनेवाला, कल्याण का कर्त्ता, मोक्षरूप और धर्म के कामों को ही करने वाला, अपने भक्तों को धर्म के कामों में युक्त करनेवाला, अत्यन्त मंगलरूप और धार्मिक मनुष्यों को मोक्ष देनेहारा है। उसको हमारा बारम्बार नमस्कार हो।
सभी मनुष्यों का कर्तव्य है कि वह प्रातः व सायं ईश्वर का चिन्तन, ध्यान, उसकी स्तुति व प्रार्थना ऋषि-प्रदत्त सन्ध्या पद्धति से करें। इससे मनुष्य ईश्वर के उस पर उपकारों के प्रति कृतघ्नता के पाप से मुक्त होता है। सब मनुष्यों को वेदमन्त्रों व उनके अर्थों पर विचार द्वारा ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना करनी चाहिये। हमने ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना के कुछ ऋषि वचनों व उनके आशय को इन पंक्तियों के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। ईश्वर सब मनुष्यों को सुबुद्धि एवं धर्म पालन करने की शक्ति प्रदान करें। सभी स्वस्थ, निरोग, ऐश्वर्ययुक्त एवं सुखों से युक्त हों। ईश्वर को पुनः सादर नमस्ते।
–मनमोहन कुमार आर्य