गजल
मेरी कश्ती का अब तू भी सहारा हो न पायेगा,
कभी मझधार दरिया का किनारा हो न पायेगा।
कहीं पतवार जो टूटी …तो नैया डूब जाएगी
खुदा करना जरा रहमत उतारा हो न पायेगा।
मिले जन्नत अगर मुझको नहीं जाना वहाँ बस यूँ
मेरी माँ के तो चरणों सेे वो प्यारा हो न पायेगा।
करो कोशिश मगर जितनी नहीं मिलती कभी चाहत,
ये शय है वो जिसे हासिल बिचारा हो न पायेगा।
मुकद्दर साथ चलती है कभी महसूस कर लेना,
बिना कोशिश तू किस्मत का सितारा हो न पायेगा।
जलाए जा दिये की लौ न रख सूनी कभी दर को,
बिना चिंगारियों के तू ….शरारा हो न पायेगा।
— सीमा शर्मा सरोज