ग़ज़ल
जश्न सब ज़िन्दगी के मनाया करो।
बाँसुरी चैन की मिल बजाया करो।
सख़्त मेहनत करो मुस्कुराओ सदा,
मुश्किलों को हँसी में उड़ाया करो।
भाई को भाई से जो मिलाते मिलें,
हौसला उन सभी का बढ़ाया करो।
नित पसीना बहाते हैं जो लोकहित,
पीठ उनकी ज़रा थपथपाया करो।
वीर जब हों र वां सरहदों की तरफ़,
राह पर फूल उनकी बिछाया करो।
जिनपेचलकेजवानोंकोजाना हैकल,
रास्ते वो सभी जग मगाया करो।
ख़िदमते ख़ल्क़ में जो भी तल्लीन हो,
उसको पलकों पे अपनी बिठाया करो।
— हमीद कानपुरी