ग़ज़ल
थरथराते लब थे मेरे आपको यूँ देखकर
होश उड़ जाते कभी थे आपको यूँ देखकर।
जाँ निकल जाती थी मेरी आपके दीदार से
दिल ये धड़का था हमारी आपको यूँ देखकर।
कुछ हया थी और हमको डर भी उनका था जरा
कुछ निगाहों की थी बंदिश आपको यूँ देखकर।
वो जमाना खूब था मौसम सुहाना खुशनुमा
आ ही जाती थीं बहारें आपको यूँ देखकर ।
आ गया अब उम्र का ये भी हकीकत दौर अब
याद आती उन दिनों की आपको यूँ देखकर ।
— सीमा शर्मा सरोज