बेदर्द दुनिया
बेदर्द दुनिया में,
दर्द को अपना मान बैठा।
अपना समझ कर,
गैरों को गले लगा बैठा।
न मिला चाहत को
कोई गुलाब अगर,
तो दर्द भरे चीखते कांटों को
अपने गले लगा बैठा।
न मिला रोशनी में
कोई हमसफ़र ,
तो अंधेरों में जगमगाते
जुगनू को अपना
हमराही बना बैठा।
न मिला खुदा अगर
किसी मंदिर या मस्जिद में
तो राह पड़े
किसी पत्थर को पूज
उसे अपना रब्ब मान बैठा।
— राजीव डोगरा