ग़ज़ल
वो दर्द देने में भी करते हैं किफायत अब तो
जान लेकर ही वो करते हैं रियायत अब तो।
बड़ी मुश्किल से संभाला है मैंने दिल को
धड़कने कर रही थीं मुझसे बगावत अब तो।
कहो कब तक ना पलकों से अश्क गिरने दूं
हमसे होती नहीं अश्कों की हिफ़ाज़त अब तो।
इश्क करती है नजर दिल क्यों टूट जाता है
चाहते कर रही हैं हमसे शिकायत अब तो।
दिल यह करता है कि रुसवाइयों में घिर जाऊं
जान ले लेना कहीं मेरी यह शराफत अब तो।
उन्हें मालूम है जानिब के जीना मुश्किल है
फिर भी करने लगे हैं वो भी अदावत अब तो ।
— पावनी जानिब सीतापुर