“संभलते कैसे”
अदाओं से तेरी संभलते तो संभलते कैसे
निगाहों से तेरी बचके निकलते तो निकलते कैसे,
चांद गायब था शब भर तुम भी न आए छत पर
फलक पर सितारे चमकते तो चमकते कैसे,
डालियों को सीखना है तुमसे मोहब्बत की अदा
फूलों से लदकर लचकते तो लचकते कैसे,
तुम्हारे आने से आ जाती है फूलों में चमक
तुम गर ना हो गुलशन में तो फूल महकते कैसे,
तुम सामने ही थे पर अनदेखा किए मुझको
मिलने को तुमसे तरसते भी तो तरसते कैसे,
घटा छा जाती है बादल भी चले आते हैं
जिनको हो बरसना वो बादल भी गरजते कैसे,
तुम्हें ही नापसंद थी आंसुओं की बारिश
सामने आंख भर भी जाए तो बरसते कैसे,