गीत/नवगीत

मलय-हिमालय-विंध्य-सतपुड़ा

मलय-हिमालय-विंध्य-सतपुड़ा अंबर धरा पे लाते हैं
अरब-हिन्द-बंगाल के मोती, तेरे पग सहलाते हैं
जय भारती! हे भारत माँ! हम तेरे ही गुन गाते हैं।

आज शहीदों के सपनों को, सच करके दिखलाएँगे
माता की चुनर सजाने को, बलि-वेदी पर मिट जाएँगे
हो तेरी जय-जयकार सदा, हम ऐसा गीत सुनाते हैं
हम तेरे ही गुन गाते हैं।

तेरी लाज की खातिर हर मस्तक, चरणों में तेरे कट जायेगा
कई तन खंडित हो जाएँगे, कोई हमको बाँट न पाएगा
हम अपनी लहू की बूँदों से, इक लछमन-रेख बनाते हैं
हम तेरे ही गुन गाते हैं।

मिले जन्मों में प्यार तेरा, हम तेरे पूत कहायें
नहीं जन्नत से कुछ मतलब है, बस तेरी ममता पायें
तेरी गोद में तन से हो जान जुदा, यही प्यारा सपन सजाते हैं
हम तेरे ही गुन गाते हैं।

शरद सुनेरी