अनजान मैं रही कि….
अनजान मैं रही कि … क्या मंज़िल है मेरी
पूरी शिद्दत से तेरी मंज़िल को
अपना ही मानती रही !
अनजान मैं रही कि … ख्वाहिशें क्या होती हैं
गुजरते वक़्त के संग
तमन्नाएँ कम होती ही गयीं !
अनजान मैं रही कि …समझदारी क्या होती है
बढ़ती उम्र के संग
नादानियाँ बढ़ती ही गयी !
अनजान मैं रही कि … क्या चाहते हो मुझसे
तेरी चाहत में घिरी
तुझको मैं चाहती ही रही !!
अंजु गुप्ता