‘जंगल के राजा’ का आबाद होता घर
आज के लगभग सभी समाचार पत्रों में भी प्रकाशित यह खबर, हवा के ताजे झोंके जैसी सुखद प्रतीत हुआ है कि, भारतीय जंगलों में जीव जगत के ईको सिस्टम के शीर्ष पर विराजित भारतीय ‘आनबानशान ‘के प्रतीक जंगल के राजा ‘बाघ ‘ की संख्या 30 प्रतिशत तक बढ़कर अब 2967 तक हो गई है। जबकि 2006 में बाघों की कुल संख्या मात्र 1411 थी, 2010 की गणना के अनुसार इनकी संख्या बढ़कर 1706 हो गई, 2014 में 2226 थी जो अब की गणना के अनुसार 33 प्रतिशत बढ़कर कुल लगभग 3000 हो गई है।
इसके लिए भारत सरकार के ईमानदारी से किए प्रयास और वन विभाग के अधिकारियों / कर्मचारियों की अथक मेहनत और अवैध तस्करों और शिकारियों से उन्हें बचाने के कठिन प्रयास के चलते ये मुकाम हासिल हो पाया है। केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री के अनुसार बाघों के इस व्यापक गणना में 15000 कैमरे 18 राज्यों के 80000 वर्ग किमी.के विस्तृत क्षेत्र में लगाकर एम-स्टीप्स साफ्टवेयर पद्धति से जियो टैगिंग के माध्यम से बाघों की सटीक गणना की गई है, इसमें सरकार के 10.22 करोड़ रूपये खर्च हुए हैं।
दुनियाभर में प्रतिवर्ष 29 जुलाई को वर्ल्ड टाइगर डे मनाया जाता है, जिसमें बाघों की गिनती, उनकी सेहत, उन पर मंडराते खतरे और उनके बचाव के तरीकों आदि पर विमर्श और विकल्प के बारे में सोचा जाता है। 2016 की गणना के अनुसार विश्व में कुल लगभग 6000 बाघ बचे थे, जिनमें 3891बाघ भारत में थे। विश्व में बाघों की कुल 6 प्रजातियाँ क्रमशः साइबेरियन बाघ, बंगाल टाइगर {अपने भारतीय बाघ }, इंडोचायना बाघ, मलयालन बाघ, सुमात्रा बाघ और दक्षिण चीनी बाघ होते हैं, जिनमें सबसे ज्यादे भारतीय बाघ, जिन्हें बंगाल टाइगर ही कहा जाता है, बचे हैं।
बाघों के जीवन के लिए सबसे बड़े खतरों में विकास के नाम पर उनके आवासीय क्षेत्रों से होकर जाने वाली चौड़ी सड़कों, रेलों और नदी जोड़ो कार्यक्रमों से उनके अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा है, इसके अतिरिक्त बढ़ती आबादी के दबाव में जंगलों में मानव का बढ़ता अतिक्रमण है। पर्यावरण व जैव वैज्ञानिकों के अनुसार प्रति बाघ 200 वर्ग किमी. जगह के अनुसार भारत में वर्तमान में जीवित बाघों के लिए लगभग 6 लाख वर्ग किमी. जगह चाहिए, परन्तु भारतीय बाघ अभयारण्यों का कुल क्षेत्रफल 3 लाख 80 हजार वर्ग किमी.ही है, इससे उनमें भोजन के लिए भयंकर आपसी लड़ाईयाँ होतीं हैं, जिनमें एक की मौत निश्चितरूप से होती है।
इसके अतिरिक्त उन्हें भोजन के लिए शाकाहारी जानवरों जैसे सूअर, हिरन, नीलगाय आदि पर्याप्त संख्या में होने चाहिए, परन्तु दुर्भाग्य से जंगलों की अवैध कटान से हो रही विरलता और अवैध शिकारियों द्वारा भी ‘इन जानवरों ‘ का अंधाधुंध अवैध शिकार हो रहा है, जिससे बाघ भूखों मर जाते हैं। सरकार को बाघों को अवैध शिकारियों से बचाने के लिए वन्य कर्मियों और सुरक्षागार्डों की पर्याप्त संख्या भी बढ़ानी ही पड़ेगी, क्योंकि अवैध शिकारी पलक झपकते ही बाघों को जंगलों में बसे गरीब ग्रामीणों को कुछ पैसे के लालच देकर बाघों को या तो जहर देकर मार देते हैं या उन्हें फंदे में फंसा कर मौत के घाट उतारकर उनकी हड्डी, मांस, नाखून और खाल को चीनी बाजारों में करोड़ों रूपये में बेच देते हैं। हमारा भी सामाजिक दायित्व बनता है कि हम बाघों को बचाने में अपना पूर्ण सहयोग दें, जंगलों में रहने वाले लोगों को भी उनके जीवन यापन की, रोजगार की योजनाएं लागू करके शिकारियों के लोभ से उन्हें बचाना होगा और सबसे महत्वपूर्ण बात, अवैध शिकारियों को पकड़े जाने पर उन पर कठोर दण्ड {आजीवन कारावास तक की सजा } दिए जाने का प्रावधान हो, तभी हमारे ये संरक्षित बाघ बचे रहेंगे।
— निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, 31-7-19