जिंदगी
जिंदगी सवाल का जवाब ढूंढती है
बड़ी शिद्यत से बेहिसाब ढूंढती है
क्या है मक़सद यहां पे आने का
हो गये गुम कहां अल्फाज़ ढूंढती है
घूम के देख लिये दर बदर अंजुमन
है सवाल अब भी लाज़वाब ढूंढती है
कौन अपना है यहां कौन बेगाना है
दौर-ए- गम में खड़े हिसाब ढूंढती है
हो गया वक्त है ये रुह की आराईश का
फ़ानी दुनियां में क्या शबाब ढूंढती है
— पुष्पा “स्वाती”