दूर रह के जिये… इक-दूजे के लिये
नाजुक सा रिश्ता, तेरा मेरा
कसमों से परे, बंधनों से परे !!
इक डोर है बाँधे, हम दोनों को
दूर रह के जिये… इक-दूजे के लिये !!
कभी याद आये, कहानी बन कर
कभी आँखों का, पानी बन कर !!
तपती हुई रेत पे, जब भी चली
शीतलता मुझको, तुझमें ही मिली !!
महके तुममें, खुशबू की तरह
सजाए सपने, जुगनू की तरह !!
बिखरी जब मैं, तुम भी टूटे
कईं ख्वाब, हथेली से छूटे !!
इक अटूट बंधन तो अब भी है
कसमों से परे, बंधनों से परे !!
इक डोर है बाँधे, हम दोनों को
दूर रह के जिये… इक-दूजे के लिये !!
अंजु गुप्ता