घर घर चूल्हा चौका करती करती सूट सिलाई माँ
बच्चों खातिर जोड़ रही है देखो पाई पाई मां
बाबूजी की आमद भी कम ऊपर से ये महंगाई
टूटे चश्मे से बामुश्किल करती है तुरपाई मां
टीका कुंडल हसली कंगन तगड़ी नथ बिछुए चुटकी
बेटी की शादी की खातिर सब गिरवी रख आई मां
सहते सहते सारे घर की बढती जिम्मदारी को
घटते घटते आज बची है केवल एक तिहाई मां
सारे रिश्ते झूठे निकले मतलब के थे यार सभी
केवल तूने ही आजीवन निश्छल प्रीत निभाई मां
पिज्जा बर्गर कब होते थे होते थे मीठे पूड़े
देती थी रोटी पर रख कर शक्कर और मलाई मां
दर्जन भर लोगों का कुनबा फिर भी था सांझा चूल्हा
मिल जुल कर रहती थी घर में दादी चाची ताई माँ
घेरा जब जब अवसादों ने अंधियारों में जीवन को
उम्मीदों के दीप जला कर भोर सुहानी लाई मां
नाम सभी हैं गुड से मीठे चाहे मैं जो भी बोलूँ
बीजी जननी माता मम्मी अम्मा मैया माई माँ
बच्चा ही मक़सद होता है माँ के जीवन का अज्ञात
हिम्मत दे उसके ख्वाबों को देती है ऊंचाई माँ
— अजय अज्ञात , फ़रीदाबाद