भैया बांटन
एक सास ता उम्र उस छोटी बहू को ये कहकर डराती और समझाती रही कि भैया बांटन में बेईमानी न करना फलती नही है क्योकि उसका छोटा बेटा ही अन्य बेटों की तरह चालाक कपटी स्वार्थी नही था… आया जब बंटवारे का समय तब खिचडी की थाली उसकी तरफ से उठा दी गई… इस तरह खिचडी का घी अन्य बेटों को और सूखी खिचडी छोटे बेटे को ……
” ज्यादा घी न खिलाऔ सासू माँ…कुत्तों को घी हजम नही होता… अब जिनको ये घी खिलाकर हष्ट पुष्ट किया है उनसे ही सेवा भी करवा लेना… कहो तो एक हिस्सा और छोड दूं आपकी सेवा का उनके लिये… माँ भगवान होती है और भगवान चालाकियां नही खेलते” अन्दर ही अन्दर खुद से कह रही थी छोटी बहू ।
” माँ जी भैया बांटन में बेईमानी फलती नही… आप ही कहती थी न… आपकी तो ममता भी ब॔ट चुकी है… मुझे नही लगता अब आप मेरे साथ खुश रह पायेंगी… इसलिये…”
सास की सांस हलक में अटक गई क्योकि अन्य बहुओं और बेटों को सिर्फ जायदाद से मतलब था ।
— रजनी चतुर्वेदी (विलगैया )