हमीद के दोहे
आज़ादी का अपहरण , करे जहाँ सरकार।
तर्क बगावत का वहाँ , पाता है आधार।
ज़र के भूखे भेड़िए , चन्द ज़मीर फरोश।
पै दर पै दिखला रहे , फिर से अपना जोश।
अगर चाहिए ज्ञान तो,सुख का कर दे त्याग।
विद्या मिलती है उसे,जिसके दिल में आग।
इधर उधर की बात कर, मचा रहें हैं शोर।
ज़ुल्मी पर सरकार का, नहीं चल रहा जोर।
पर्दे के अन्दर करो , छुप कितने ही पाप।
ऊपर से रब देखता, रखता सब की माप।
इसमें शायद है छुपा ,जीवन का हर सार।
जीना हमको रोज़ है , मरना है इक बार।
— हमीद कानपुरी