सर्वत्र शर्मनाक माहौल में एक आशा की किरण
भारतीय कथित लोकतंत्र में कितने शर्म और ग्लानि की बात है कि जो जनप्रतिनिधि देश की जनता की हिफ़ाज़त, उसके कष्टों के निवारण, खुशी और समृद्धि के लिए चुना जाता है, वही ‘एक नाबालिग बेटी तुल्य लड़की ‘से बलात्कार जैसा ‘घिनौना कुकृत्य ‘कर बैठता है ! और तो और उस हत् भागी, अबला लड़की के उस कुकृत्य पर ‘विरोध ‘ करने पर सारा सत्ता उस ‘बलात्कारी ‘के पक्ष में अपने सभी लोकतांत्रिक शक्तियों मसलन पुलिस, कोर्ट-कचहरी, जेल आदि सभी दण्डात्मक शक्तियों के साथ खड़ा हो जाता है, उस अबोध, नाबालिग, कमजोर लड़की के लाख प्रयत्नों के बावजूद यहाँ की ‘पुलिस ‘ उसकी एफआईआर तक नहीं लिखती !, उलटे उसके बाप को उठाकर जेल में बन्द कर देती है, जहाँ उसके संरक्षण में, बलात्कारी का सगा भाई और अन्य गुँडे उस लड़की के बाप की इतनी बर्बर तरीके से पिटाई करते हैं कि उसकी ‘मौत ‘हो जाती है, अत्याचारी बलात्कारी विधायक के जुल्म की इंतहां यहीं तक नहीं होती…वह लड़की के चाचा को भी, जो दिल्ली में नौकरी कर रहा होता है, को अनापशनाप आरोप लगाकर स्थानीय पुलिस के द्वारा भी उठवाकर उ.प्र.की एक ‘जेल ‘ में बन्द करवा देता है, आश्चर्यजनक रूप से अभी तक बलात्कारी विधायक खुला घूमघूमकर अपने निर्देशन में ये कुकृत्य करा रहा होता है। अन्ततः उस बलत्कृत लड़की को उ.प्र.के एक मन्दिर के मठाधीश मुख्यमंत्री के दरवाजे पर स्वयं पर तेल छिड़ककर ‘आत्मदाह ‘ करने के असफल प्रयास के बाद और सुप्रीमकोर्ट की कड़ी फटकार के बाद ही उस बलात्कारी विधायक को बलात्कार की घटना के लगभग एक साल बाद ही गिरफ्तार किया जाता है।
गिरफ्तारी के बाद भी वह बलात्कारी विधायक उस लड़की और उसके परिवार तथा उसके परिजनों को मुकदमा वापस लेने, बयान बदलने आदि के लिए बार-बार अपने गुर्गों से धमकाता है, यहाँ तक कि ये ‘समझौता ‘ न करने पर ‘इसके गंभीर परिणाम भुगतने ‘की धमकी भी बार-बार दी जाती है, बकौल सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस, इन कृत्यों के लिए 17 जुलाई 2019 को आई उस लड़की, उसकी माँ और उसकी चाची {अब दिवंगत } की हस्ताक्षरित चिट्ठी, जो चीफ जस्टिस ऑफ सुप्रीमकोर्ट के ही नाम होती है, वह 31 जुलाई 2019 तक दबा दी जाती है, मतलब सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस को जानबूझकर वितरित नहीं की जाती है (सुप्रीमकोर्ट तक भी साजिश !), इसी बीच उस लड़की, उसकी चाची, उसकी मौसी और उसके केस को लड़ने वाले वकील को ले जा रही कार को, एक उल्टी दिशा से आ रही, नंबर प्लेट पुती हुई ट्रक से इतना जबर्दस्त एक्सीडेंट होता है (जानबूझकर कराया जाता है) कि उस लड़की की चाची और मौसी दम तोड़ देतीं हैं और वह लड़की तथा उसके वकील ‘वेंटिलेटर ‘ पर अपनी अंतिम साँसे गिन रहे होते हैं।
तो ये है भारतीय लोकतंत्र के एक चुने हुए जनप्रतिनिधि (कथित माननीय ? विधायक जी) द्वारा बलित्कृत लड़की का विरोध करने का अंजाम (उसके लगभग पूरे परिवार का जघन्यतम्, बर्बर और निर्मम तरीके से हत्या), अब सुप्रीमकोर्ट से आस बची है, परन्तु जब वह लड़की ही अंतिम साँसे गिन रही है, बाप को मार दिया, चाची को मार दिया, मौसी को मार दिया, चाचा को जेल में डाल दिया…तो अब बचा ही क्या है ? ये कुकर्म उस जनप्रतिनिधि के हैं जो ‘ सबसे पवित्र धर्मपुस्तक गीता ‘ पर हाथ रखकर ‘संविधान की रक्षा ‘और ‘जनता की सेवा ‘करने का, सार्वजनिक रुप से ‘भारत के राष्ट्रपति के प्रतिनिधि राज्यपाल ‘के समक्ष ‘शपथ ‘ लेता है।
यह कितनी बार लिखा जा चुका है कि इस देश के लोकतंत्र का गुँडों, बलात्कारियों, मॉफियाओं, हत्यारों, दंगाफैलाने के कुत्सित प्रयास करने वालों और इस देश की अमनशांति को पलीता लगाने वालों आदि ने, ग्राम पंचायत से लेकर भारतीय संसद तक अपहरण कर लिया है (कब्जा जमा लिया है), जब तक इन ‘अपराधियों और मॉफिया तत्वों का सफाया नहीं होगा, इस लोकतान्त्रिक व्यवस्था की कोई सार्थकता और औचित्य ही नहीं है, यह बात इस देश में बार-बार सार्वजनिक तौर पर सिद्ध हो रही है, दर्शित हो रही है, इस लोकतंत्र को ग्रहण लग चुका है।
— निर्मल कुमार शर्मा