ग़ज़ल
जौंक-ओ-मीर शायरी है अभी
नज़्म के एक लेखनी है अभी |
नज्र में उनकी’ तीरगी है अभी
वो बची ख़ाक, जिंदगी है अभी |
बेवफा बात जो की’ कढ़वी
दो गुनी जान फूँकती है अभी |
माधुरी तो शबाब है, पीओ
रात बाकी है’ मयकशी है अभी |
राज नैतिक लड़ाई’ जैसी हो
आपसी गाढ़ी’ दोस्ती है अभी |
बाहरी तौर पर लगे साथी
आपसी तेज दुश्मनी है’ अभी |
वो बहुत दूर हो गई मुझसे
दूरियों में भी’ दिलकशी है अभी |
आशिकों मौत से नहीं डरते
आखरी वक्त,आशिकी है अभी |
कालीपद’प्रसाद’