ग़ज़ल
चारो तरफ की’ मार से’ दुश्मन बिखर गए
जांबाज़ सैनिकों की’ दिलेरी से’ डर गए |
हर एक ने लिखा नया’ इतिहास जंग में
दश दश को’ मारकर वहां’ से कूच कर गए |
जब भाग दौड़ खूब मची, सबकी नज़र बचा
वो शत्रु भागकर दगा’ देकर किधर गए ?
चारो तरफ है’ फांद किधर जायगा अभी
वो जान से जरूर मरेगा अगर गए |
संसार की तमाम ख़ुशी त्याग कर दिया
सब काम ख़त्म जब हुआ’ आनंद घर गए |
वादा किया अनेक निभाया को’ई नहीं
समझे यही कि वक्त अभी तो गुज़र गए |
ईमान का नहीं को’ई’ धंधा, नसीब है
वादे से’ रहनुमा अभी’ खुद ही मुकर गए |
‘काली’ कहा, पता करो’ हम हार क्यों गए
इस हार से घमंड का’ पारा उतर गए |
कालीपद ‘प्रसाद’