पुस्तक समीक्षा

खेल नंबरों का

समीक्ष्य कृति – खेल नंबरों का
कृतिकार- गोविंद शर्मा
प्रकाषक -साहित्यागार, धम्माणी मार्केट, चैड़ा रास्ता जयपुर।
समीक्षक – प्रो. शरद नारायण खरे

लघुकथा व्यस्त समय की आवष्यकता है। भागदौड़ भरी जिंदगी में, सरसरी नजर में भी जिस कथा को न केवल पूरा पढ लिया जाए, बल्कि उसे आत्मसात भी कर लिया जाए, वही लघुकथा है। वैसे भी विसंगतियों, विद्रूपताओ,ं नकारात्माओं व विडंबनाओं से परिपूर्ण इस समाज में प्रतिकूलताओं व रूग्णाताओं पर प्रहार करने के लिए यदि लघुकथा को एक सषक्त शस्त्र की संज्ञा दी जाए, तो कदापि यह अनुचित न होगा। यही कारण है जोकि वर्तमान में व्यापकता के साथ लघुकथाएं न केवल लिखी- रची जा रही हैं, बल्कि पढी-समझी-सराही भी जा रही हैं। बढती विकृतियों के अस्वस्थ हालातों पर आघात करके लघुकथाएं न केवल पिन पाइंट कर रही है, बल्कि वे एक उज्ज्वल आगत का मार्ग प्रषस्त करने का सतत् प्रयास करने में भी संलग्न हैं।
वर्तमान में देष के प्रतिष्ठित लघुकथाकारों में इस कृति के सृजक गोविंद शर्मा जी का नाम गिना जाता है। इसके पूर्व भी वे अनेक लघुकथा-संग्रहों के साथ ही अनेक फुटकर लघुकथाओं का सृजन करके अपनी तीक्ष्ण कलम का परिचय दे चुके है। निसंदेह शर्मा जी एक सार्थक, परिपक्व, अनुभवी व समसामयिक लघुकथाकार हैं। समीक्ष्य कृति ‘‘खेल नंबरों का’’ में श्रेष्ठ 151 लघुकथाओं का समावेष हैै। हर लघुकथा अपनी अभिव्यक्ति में प्रखर है। हर लघुकथा मंे एक अंतनिर्हित मौलिकता को धारण किए हुए है। पाठकों से प्रत्यक्ष संवाद करती ये लघुकथाएं सम्प्रेषणीयता के धरातल पर सटीक व सम्पूर्ण हैं। यह तय है कि लघुकथाकार जब तक सधा/मंझा। संतुलित/अनुषासित/दूरदृष्टा नहीं होगा, तब तक वह पैनी लघुकथाओं का सृजन नहीं कर सकता। सीमित शब्दों में व्यापकता का समावेष करने की कला में दक्ष गोविंद शर्मा जी ने जिस तरह से समाज का सर्वेक्षण किया और विषमताओं को खोजकर उनके इर्द-गिर्द षब्दों को संयोजित कर गहराई व तीखेपन से युक्त लघुकथाओं का सृजन किया है- वह निःसंदेह प्रणम्य है।
अस्वस्थताएं तो हम सब भी रोजाना के जीवन में देखते हैं, पर उन अस्वस्थताओं को अभिव्यक्ति में ढालकर सामाजिक सरोकारों का निर्वाह करना विरलो के सामथ्र्य की ही बात है। व्यक्ति, परिवार, समाज, धर्म, आध्यात्म, राजनीति लघुकथाओं में निषाना बनाया गया है, जो सुखद अहसास कराता है। शामिल लघुकथाओं की विषिष्टता यह है कि चार पंक्ति की लघुकथा भी उतनी ही अधिक प्रभावषाली है, जितनी एक पृष्ठ की लघुकथा। अगर लघुकथा को सीमित शब्दों में बड़ी बात कहने की कला निरूपित किया जाए, तो कदापि अनुचित न होगा।
यह यथार्थ है कि लघुकथा का प्रणयन उतना सहज नहीं होता है, जितना प्रायः उसे समझ लिया जाता है, क्योंकि लघुकथा की रचना करते समय एक अनुषासन/एक संस्कार/एक आंतरिक चेतना व एक विषिष्ट दक्षता की आवष्यकता होती है और ये समस्त विषिष्टताएं स्वनामधन्य लघुकथाकार गोविंद शर्मा जी में समाहित हैं। यही करण है कि उनका लघुकथा-सृजन उत्कृष्टता व दक्षता से परिपूर्ण है।
समीक्ष्य कृति की हर लघुकथा अपने आप में मौलिक है, और एक गतिषीलता धारण किए हुए है। लघुकथाओं को पढने के उपरांत यह स्पष्ट हो जाता है कि हर लघुकथा के मूल में गहन चिंतन विद्यमान है। यदि यह कहा जाए कि ‘खेल नंबरों का’ की लघुकथाएं हमारे जीवन की कहानी हैं, हमारे समाज की सच्चाई की बयानी हैं, तो कदापि असत्य न होगा। लघुकथाओं का हमारे आसपास परिभ्रमण करना ही उनका सषक्त पक्ष है। इन लघुकथाओं में व्यापकता हैं, विचार मंथन हैं, सांस्कृतिक चेतना है, आत्म कथ्य है, अनुभव है, सामाजिक सर्वेक्षण है, सामाजिक व्यथा है, मानवीय वेदना है, जनवादिता है, आम आदमी का दर्द है, व्याप्त समस्याएं है, गिरते मूल्य हैं, बिखरते रिष्ते हैं, दरकते नाते हैं, विकृतियों का अम्बार है और झकझोर देने वाली सच्चाई है। सभी लघुकथाएं प्रभावी व सार्थक हैं, इसलिए मात्र कुछ का उल्लेख करना कदापि उचित नहीं माना जा सकता। शीर्षक लघुकथा ‘‘खेल नंबरों का’’ राजनीतिक मूल्य पतन की वास्तविकता पर भलीभांति प्रकाष डालती है। लघुकथाओं में संवेदना है, एक भावुकता है -जोकि हमारे मस्तिष्क तक पहुंचकर हमारी चेतना को झकझोरने में सक्षम है। हर लघुकथा प्रवाहमयता का प्रतिनिधित्व करती है। जिस तरह से हर रचना में सुर, लय व ताल की आवष्कता होती है,ं उसी प्रकार से लघुकथा में भी इनका होना अपेक्षित होता है। और यह सब खेल नंबरों की लघुकथाओं में समग्रता व व्यापकता के साथ विद्यमान है। मुझे आषा ही नहीं वरन् पूर्ण विष्वास है कि यह कृति लघुकथा साहित्य के विकास में न केवल सहायक सिद्ध होगी, बल्कि गोविंद शर्मा जी के सारस्वत यष को भी बहुगुणित करने का कार्य सम्पन्न करेगी।
कृतिकार के इस सार्थक व प्रभावी सृजन को मैं प्रणाम निवेदित करता हूं।

— प्रो. शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]